गीता सूत्र - 2.47 के सन्दर्भ में
तीन गीता के सूत्रों को और देखते हैं -----
सदृशं चेष्टते स्वस्याः प्रकृते ज्ञानवान अपि ।
प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रह : किं करिष्यति ॥ गीता -3.33
यत अहंकारं आश्रित्य न योत्स्ये इति मन्यसे ।
मिथ्या एष ब्यवसाय : ते प्रकृतिः त्वां नियोक्ष्यति ॥ गीता - 18.59
स्वभावजेन कौन्तेय निबद्धः स्वेन कर्मणा ।
कर्तुं नेच्छसी यत मोहात करिष्यसि अवश : अपि तत ॥ गीता - 18.60
गीता के तीन सूत्र कहते हैं ------
तीन गुणों का समीकरण जो हर पल मनुष्य के अन्दर होता है , मनुष्य के स्वभाव का निर्माण
करता है और मनुष्य अपनें स्वभाव का गुलाम है एवं मनुष्य से जो कुछ भी होता है ,
वह उसके स्वभाव से होता है ।
Gita says .....
Threefold natural modes make the nature of beings and
depending upon his nature one does the work .
Modes are the actual doer and man is the only witnesser .
It is dhyana which generates such an energy
which brings in , the awareness about this
Gita - modes science .
Infact [gita - 8.3] nature of human beings , is adhyaatma [ spirituality ] .
Read Gita ....
Think about Gita ....
and .....
slowely slowely ....
merge into ...
Gita
==== ॐ ======
Wednesday, January 5, 2011
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