Sunday, January 23, 2011

गीता अध्याय - 02




एक झलक -----
यह अध्याय गीता में दूसरा बड़ा अध्याय है ; पहला बड़ा अध्याय है - अध्याय - 18
जिसमें 78 सूत्र हैं और
यह अध्याय 72 सूत्रों वाला है ।
अध्याय दो में अर्जुन कहते हैं ------
हे प्रभु मैं इस समय कुछ धार्मिक बातों के कारण भ्रमित हूँ और
आप से प्रार्थना करता हूँ की आप मुझे उचित
मार्ग दिखाएँ और प्रभु अध्याय - 18 में अपनें
आखिरी सूत्र के माध्यम से अर्जुन से पूछते हैं ------
अर्जुन क्या तेरा अज्ञान जनित मोह समाप्प्त हुआ ?
क्या तुम शांत मन से गीता - उपदेश सूना ?

गीता आध्याय दो में दो बातें हैं ;
एक है आत्मा रहस्य जो वेतंत का आत्मा है और दूसरी बात है - स्थिर प्रज्ञ
योगी की पहचान ।
स्थिर प्रज्ञ योगी एक मात्र ऐसा योगी है जो आत्मा को समझता ही नहीं आत्मा में
बसता भी है अर्थात वेदांत का साकार रूप होता है - स्थिर प्रज्ञ - योगी ।
जैसे
अध्याय दो में दो बातें हैं और अध्याय - 18 में भी दो बातें हैं ; संन्यास और त्याग रहस्य ।

संन्यास के साथ त्याग आता है .......
त्याग से स्थिर प्रज्ञता का प्रवेश होता है .....
स्थिर प्रज्ञता वह दृष्टि देती है जो आत्मा का द्रष्टा होती है ॥
अध्याय - दो और अध्याय - 18 जब आपस में मिलते हैं
तब उस योगी के मन दर्पण पर .......
प्रभु श्री की मूर्ति स्पष्ट दिखती है ॥

===== ॐ =====

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