Friday, January 7, 2011
गीता अध्याय - 02
अध्याय दो , श्लोक - 2.47 के सन्दर्भ में गीता का एक और श्लोक
श्लोक - 14.10
श्लोक कह रहा है ----
मनुष्य के अन्दर तीन गुणों का एक हर पल बदलता रहता , समीकरण होता है ;
जब एक गुण ऊपर उठता है तब अन्य दो गुण दब से जाते हैं
और यह क्रम हर पल चलता रहता है ।
गुण - समीकरण की ऊर्जा ही
कर्म करनें की ऊर्जा है ॥
गुण समीकरण से स्वभाव बनाता है ...
स्वभाव से कर्म होता है ....
और ....
जब इच्छित कर्म - फल नहीं मिलता ....
तब दुःख होता है , और ....
जब अच्छा फल मिलता है तब .....
सुख मिलता है ॥
गीता में प्रभु श्री कृष्ण का जोर है इस बात को समझानें में की ....
फल की कामना जिस कर्म में छिपी हो वह कर्म ....
प्रभु की ओर नहीं ....
नरक की ओर रुख को रखता है ॥
कर्म - योग में
कर्म - बंधनों की पकड़ को नित पल ढीली करते रहना पड़ता है और यह अभ्यास
ही ....
ज्ञान - योग की ....
परा निष्ठा ...
है ॥
==== ॐ =====
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