पहला सोपान
गीता अध्याय - 02 को हम यहाँ निम्न भागों में देख रहे हैं ------
ध्यानोपयोगी सूत्र
गीता योगी और वेदों का सम्बन्ध
आत्मा
स्थिर प्रज्ञा वाला योगी
प्रथम सोपान के अंतर्गत ध्यानोपयोगी सूत्रों में हमनें इस अध्याय के बाईस सूत्रों को देखा और
साथ अन्य अध्यायों के चौबीस अन्य सूत्रों को भी देखा । अब हम अभी तक जो कुछ भी
अध्याय - दो के अंतर्गत देखा है ,उसका सारांश पुनः देखते है फिर अगले सोपान पर चलेंगे ।
[क] भोग में आसक्त मन प्रज्ञा को भी अपने साथ ले लेता है ।
[ख] कर्म इन्द्रियों को मन - माध्यम से साधना चाहिए ।
[ग] प्रकृति के तीन गुण मनुष्य के स्वभाव का निर्माण करते हैं ।
[घ] मनन से आसक्ति , आसक्ति से कामना , कामना से क्रोध उत्पन्न होता है ।
[च] मोह और वैराग्य एक साथ एक बुद्धि में नहीं रहते ।
[छ] चाह रहित कर्म निर्वाण का द्वार है ।
अब अगले अंक में हम देखेंगे - वेदों का
गीता - योगी से सम्बन्ध कैसा है ?
गीता मन की गणित है , इसको वह समझता है
जो अपनें मन को अपनें से अलग देखनें का यत्न करे ॥
===== एक ओंकार ======
Tuesday, February 1, 2011
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment