Saturday, February 26, 2011

गीता अध्याय - 03

भाग - 03


अध्याय तीन में अर्जुन के दो प्रश्न हैं कुछ इस प्रकार से -----
** यदि कर्म से उत्तम ज्ञान है तो आप मुझको कर्म में क्यों उतारना चाहते हैं ?
** मनुष्य न चाहते हुए भी पाप कर्म क्यों करता है ?
प्रश्न एक के सन्दर्भ में जो सूत्र दिए गए हैं उनको हम यहाँ दो भागों में देखना चाहेंगे ;
[क] इन्द्रिय - बिषय सम्बंधित सूत्र .......
[ख] कर्म एवं ज्ञान योग सूत्र ......
और ----
इस अध्याय की कुछ बातें प्रश्न दो के सन्दर्भ में जो कही गयी हैं उनको भी देखेंगे ॥
यहाँ इस अध्याय में पहला प्रश्न है -----
यदि कर्म से उत्तम ज्ञान है तो आप मुझको कर्म में क्यों उतारना चाह रहे हैं ?
इस प्रश्न में दो बातें हैं ; एक कर्म और दूसरी बात है ज्ञान की ।
अर्जुन किताबों या शात्रों से जो शब्दों के माध्यम से मिलता है उसे ज्ञान समझ रहे हैं
और कर्म उसे समझ रहे हैं
जो भोग से सम्बंधित क्रियाएं हैं ।
मनुष्य वह समझता है जो उसके अन्दर होता है कोई उसे नहीं समझना चाहता जो समझानें वाला
समझाना चाह रहा होता है । सुननें और सुनानें वालों की यह समस्या
श्री कृष्ण और अर्जुन में मध्य भी थी और आज भी है ।
आज देखिये -----
एक तरफ लोग कहते हैं की घोर कलयुग आ चुका है और ------
दूसरी ओर देखिये -----
गुरुओं की संख्या गुणोत्तर श्रेणी [ geometrical series ] में बढ़ रही है ;
नए - नए गुरु , नए - नए उनके शास्त्र , नए - नए उनके आश्रम और नया - नया उनका दर्शन ।
प्राचीन मंदिर , प्राचीन आश्रम , प्राचीन शास्त्र और प्राचीन जीनें के मार्ग लुप्त हो चुके हैं और
उनके नाम पर लोग अपनें अपने मन - बुद्धि की सोच को खूब फैला रहे हैं ॥
जैसे - जैसे जेब का वजन बढ़ता है ----
भय की सघनता बढती जाती है .....
and fear searches support in the form of religious Guru ।

==== om ======

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