Saturday, February 12, 2011

गीता अध्याय - 02

स्थिर प्रज्ञ - योगी कौन है ?

भाग - 02

भाग एक में स्थिर प्रज्ञ - योगी से बारे में कुछ बातें बताई गई , अब आप उन श्लोकों को देखें
जिनका सम्बन्ध सीधे तौर पर स्थिर प्रज्ञ - योगी से है ॥
गीता सूत्र
2.53 , 2.54, 2.7 , 2.8 , 2.55 , 2.70 , 2.71 ,
6.10 , 5.10 , 18.2 , 4.18 , 2.56 , 2.57 ,
2.58 , 2.61 , 2.64 , 3.34 , 6.27 , 2.66 , 2.41 ,
2.68 , 2.69 ,
22 श्लोकों की यह श्रृंखला आप को पूर्ण रूप से स्थिर प्रज्ञ योगी को ब्यक्त करती है ।

आप उठाइये गीता और एक - एक श्लोक को अपना बनानें की कोशिश करे
और जब ----
आप की मित्रता इन श्लोकों से होगी तब .......
आप स्थिर प्रज्ञ - योगी को बुद्धि स्तर पर न जान कर ....
स्वयं स्थिर प्रज्ञ - योगी हो गए होंगे ॥
इतनी सी बात ......
आप
अपनी स्मृति में रखें की -----
स्थिर प्रज्ञ - योगी एक कटी पतंग जैसा होता है .....
उसे देखनें पर ऐसा दिखता है लेकीन वह ऐसा पतंग होता है .....
जिसकी डोर .....
अब्यक्त , निराकार , परम ब्रह्म से जुडी होती है .....
और ...
जो
त्रिकाल दर्शी होता है ॥

===== ॐ =======

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