Thursday, February 3, 2011

गीता अध्याय - 02

भाग - 02

गीता अध्याय दो को हम यहाँ चार भागों में देख रहे हैं जिसमें प्रथम भाग - ध्यायोपयोगी सूत्र को हम देख चुके
हैं और अब देखनें जा रहे हैं - गीता और वेदों के सम्बन्ध को ।
इस भाग में हम जिन श्लोकों को देखनें जा रहे हैं वे इस प्रकार हैं -----
2.42 - 2.46 तक
2.7 - 2.8 , 2.53
और
18.42, 8.3, 13.13, 14.3 - 14.4,
7.5, 7.16, 9.17, 9.20, 9.21,
10.22, 10.35, 12.3, 12.4,
6.41, 6.42,

यहाँ दिए गए चौबीस श्लोकों के माध्यम से हम देखनें जा रहे हैं
गीता और वेदों के समबन्ध को ।
पहल देखते हैं इन सूत्रों के सारांश को जो कुछ इस प्रकार से बनता है ------

वेदों में दो मार्ग हैं - भोग प्राप्ति के उपाय और ब्रह्म मय होनें के उपाय ।

गीता कहता है भोग मात्र एक माध्यम है और जो आध्याम पर टिक गया वह गया , वह मनुष्य के मार्ग से
हट गया और चला गया पशु - मार्ग पर जहां भोग - भोजन के अलावा और कुछ नहीं होता ।
मनुष्य को जो मिला है वह सब अनंत है चाहे वह भोग के साधन हों या स्वयं अनंत हो ।
गीता कहता है -
भोग की उंगली पकड़ कर भोग से परे उठो
और तब तुम देख सकते हो उसे जिस से
यह भोग है , यह संसार है और सम्पूर्ण जगत की सभी सूचनाएं हैं ।
गीता कहता है ----
वेदों में भोग प्राप्ति के अनेक उपाय दिए गए हैं ........
वेदों में स्वर्ग प्राप्ति को परम माना गया है ......
वेदों में कामना पूर्ति के बिधिवत उपाय सुझाए गए हैं ....
मृत्यु के बाद उत्तम जन्म कैसे मिले ?
स्वर्ग का सुख कैसे मिले ?
और जो कुछ भी हम चाहते हो उसे कैसे प्राप्त करें ?
यह सब वेदों में मिलता है , लेकीन इनसे वह नहीं मिलता जिसके बिना हम तृप्त नहीं हो सकते ।
प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं ..........
अर्जुन ! भोग से ऊपर उठो और भोग बंधन से जब तुम मुक्त हो जाओगे तब जो तुझको दिखेगा वह है
परम सत्य जिसकी हवा तेरे तो पूर्ण रूप से तृप्त कर देगी ।

गीता में -----
स्वर्ग भी भोग का एक साधन है जहां पहुंचा ब्यक्ति पुनः मृत्यु लोक में आ कर अपनी आगे की यात्रा करता है ।
गीता कहता है ----
जैसे पानी से परिपूर्ण एक बिशाल जल श्रोत के मिलनें से
किसी का एक छोटे जलाशय से जितना
सम्बन्ध रह जाता है उतना ही सम्बन्ध .....
एक गीता - योगी का वेदों से होता है ॥
गीता को वेतांत कहते हैं अर्थात .....
वेदों का जहां अंत होता है -----
गीता वहाँ से प्रारंम्भ होता है ॥

====== ॐ =====

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