भाग - 01
दो शब्द
गीता के इस अध्याय में 43 श्लोक हैं और अध्याय का प्रारम्भ हो रहा है अर्जुन के इस प्रश्न से :-------
अर्जुन कह रहे हैं -----
हे प्रभु ! यदि कर्म से उत्तम ज्ञान है तो आप मुझको कर्म में क्यों उतारना चाह रहे हैं ?
अब आप यहाँ तीन बातों को देखें यदि गीता - बुद्धि योग का मजा लेना चाह रहे हो तब -------
[क] यहाँ अध्याय तीन में अर्जुन ज्ञान और कर्म की बात कर रहे हैं ........
[ख] अध्याय पांच में कर्म - योग एवं कर्म संन्यास की बात उठाते हैं ......
और ....
[ग] प्रभु श्री कृष्ण ......
अध्याय आठ में जा कर कर्म की परिभाषा देते हैं , और ....
अध्याय तेरह में ज्ञान की परिभाषा देते हैं ,
फिर ....
अध्याय तीन से अध्याय बारह तक में ......
कर्म ----
कर्म - योग -----
कर्म संन्यास ----
बैराग्य -----
त्याग -----
एवं
ज्ञान की बातें क्या समझे होंगे ?
किसी को समझनें के लिए उसकी परिभाषा जानना जरुरी होता है
और बिना परिभाषा जाने उसके सम्बन्ध में
और कुछ कैसे जाना जा सकता है ?
यहाँ हम गीता के उन उन्नीश श्लोकों को लेने जा रहे हैं
जिनका सीधा सम्बन्ध है - गीता ध्यान से ॥
गीता का लुत्फ़ उठाइये , गीता को अपनाइए ,
गीता के प्यार में अपने को देखिये -----
गीता कोई सर्प नहीं , गीता तो प्रभु के शब्द हैं , इनसे क्या डरना ----
इनको तो आप अपनें बुद्धि की ऊर्जा का श्रोत बनाइये
और तब ------
आप जो देखेंगे ----
वह होगा ----
नासतो विद्यते भावो
नाभावो विद्यते सत :
===== ॐ =====
Friday, February 25, 2011
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