Friday, February 11, 2011

गीता अध्याय - 02

भाग - 05

गीता अध्याय दो को हम यहाँ चार चरणों में देखनें का प्रयाश कर रहे हैं ।
इस प्रयाश में ध्यानोंपयोगी - सूत्रों , गीता - योगी एवं वेदों का सम्बन्ध और आत्मा के सम्बन्ध में
हम देख चुके हैं
अब देखनें जा रहे हैं -
स्थिर प्रज्ञ - योगी की पहचान को ॥
अर्जुन प्रभु से पूछते हैं [ गीता - 2.54 ]
स्थिर - प्रज्ञ योगी की भाषा कैसी होती है ?
वह कैसे बोलता है ?
वह कैसे बैठता है ?
वह कैसे चलता है ?
जिसको समाधि की अनुभूति हुयी होती है ॥

Who is the man settled in his intelligence ?
The awareness of ......
body and mind purifies the energy .....
flowing in intelligence and in the heart and ....
this process converts the journey into a divine flight which .....
lands somewhere - which is itself the supreme divine .
यहाँ पहले हम यह देखना चाहते हैं की अर्जुन को यह शब्द कहाँ से मिला ?
अर्जुन जब यह जानते हैं की -----
स्थिर प्रज्ञ - योगी को समाधि का अनुभव होता है तब उनको यह भी पता होना चाहिए की .....
स्थिर प्रज्ञ कैसे बोलता है , उसकी भाषा कैसी होती है , वह कैसे उठता है और कैसे बैठता है ?
प्रभु अर्जुन को अपनें श्लोक -2.53 में कहते हैं -----
हे अर्जुन !
जब वेदों के उन प्रशंगों से तेरी बुद्धि अलग होगी जो कर्म - फल प्राप्ति
एवं अन्य भोग तत्वों की प्राप्ति के समर्थन में हैं , और जब तेरी बुद्धि योग में स्थिर होगी तब तूं
समाधि के माध्यम से परम सत्य को समझनें में सफल होगा ॥

When your bewildering intelligence will get out of vedic texts which are responsible
for your unstable mind - intelligence then you will be settled in yoga ,
your intelligence will be settled in it and then through SAMADHI you will be able to realise
the absolute truth which is the absolute reality .

आज इतना ही

===== ॐ ========

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