अब हम गीता अध्याय पांच में उतर रहे हैं लेकिन उतरनें से पहले हम अपनी पिछली यात्रा
को एक बार देखते हैं------
[क]अध्याय एक में अर्जुन की बातों से मोह की झलक दिखती है[देखिये सूत्र –1.28 – 1 30 ] /
[ख]मोह की दवा के रूप में प्रभु आत्मा का प्रयोग करते हैं अध्याय –02में लेकिन इसका
कोई असर अर्जुन पर नहीं पड़ता बल्कि अर्जुन प्रभु की बात को सुन कर[सूत्र –2.53 ]एक नया
प्रश्न बना लेते हैं-स्थिर – प्रज्ञ की पहचान क्या है?
[ग]अध्याय तीन में अर्जुन के दो प्रश्न हैं;कर्म और ज्ञान में मेरे लिए कौन सा उत्तम है?और
मनुष्य न चाहते हुए भी पाप क्यों करता है?
[घ]अध्याय चार में अर्जुन का एक प्रश्न है-आप तो वर्तमान में हैं और सूर्य का जन्म सृष्टि
के प्रारम्भ में हुआ था फिर आप उनको काम – योग की शिक्षा कैसे दिए होंगे?
अब अधय –05में आकार अर्जुन पूछ रहे हैं …..
कर्म संन्यास एवं कर्म – योग में उत्तम कौन सा है?
एक बात याद रखना------
जबतक बुद्धि में प्रश्न हैं तबतक बुद्धि में संदेह रहता है
जबतक बुद्धि में संदेह हैं तबतक वह बुद्धि सत्य को पकड़ नहीं सकती
श्रद्धा से सत्य की समझ आती है
और संदेह से भोग की उलझन मिलती है//
मनुष्य पहले औरों को झोखा देना सीखता है फिर अपनें को धोखा देनें लगता है और ….
मनुष्य अबसे अधिक धोखा प्रभु को देता है//
अर्जुन भी साकार श्री कृष्ण को धोखा दे रहे हैं;एक तरफ भगवान कहते हैं और दूसरी तरफ झूठ
के सहारे उनको खुश रखना चाहते हैं/गीता में अर्जुन कभीं भी श्री कृष्ण को परम ब्रह्म का
आश्रय नहीं समझते और गीता का अंत आ जाता है//
अब हम अगले अंक में गीता अध्याय –05के29श्लोकों को एक – एक करके देखेंगे//
=====ओम=====