Monday, July 11, 2011

गीता अध्याय पांच का तीसरा भाग

गीता अध्याय पांच के अगले सूत्र ------

सूत्र –5.2 + 5.6 +[ 6.1, 6.2 ]

सूत्र – 5.6

बिना योग मे उतरे संन्यास में कदम रखना कष्ट प्रद होता है और बिना योग संन्यास में पहुँचना कठिन भी है //

सूत्र – 5.2

कर्म – योग एवं कर्म संन्यास दोनों मुक्ति पथ हैं लेकिन संन्यास से उत्तम कर्म योग है//

सूत्र –6.2

कर्म – योग एवं कर्म संन्यास दो नहीं एक के दो नाम हैं , संकल्प धारी कभीं योगी नहीं हो सकता //

गीता सूत्र – 6.1

कर्म त्याग एवं कर्म – ऊर्जा का प्रयोग न करना किसी को संन्यासी नहीं बनाता,कर्म में जब

कर्म – फल की सोच न आती हो तो वह कर्म कर्म योग होता है और वह कर्म – योगी,

कर्म सन्यासी होता है//

अब ऊपर दिए गए सूत्रों का सारांश देखें ….......

बिना कर्म – योग कर्म संन्यास संभव नहीं ----

कर्म में आसक्ति , कामना एवं अन्य भोग तत्त्वों की पकड़ का न होना ही

उन भोग तत्त्वों का संन्यास होता है ------

कर्म होनें में यदि संकल्प हो तो वह भोग कर्म होगा उस कर्म को कर्म योग बनानें में

गुण – तत्त्वों की पकड़ को ढीली करनी पड़ेगी //

कर्म - योग एवं कर्म संन्यास दो नहीं एक यात्रा के दो भाग हैं ;

कर्म योग से यात्रा प्रारम्भ होती है और कर्म संन्यास जब आता है तब वहाँ से अब्यक्त , अब्यय सनातन शाश्वत में छलांग भरनी होती है जो

कोई कृत्य नहीं स्वतः होती है //

गीता बुद्धि - योग की गणित है जिसकी समझ बुद्धि को शांत करके प्रभु के आयाम में

स्थिर कर देती है //

क्या कर रहें हैं ?

क्या करना है ?

कैसे करना है ?

क्यों करना है ?

इन सभी प्रश्नों की गणित का नाम है -----

गीता


====ओम=====


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