गीता अध्याय पांच के अगले सूत्र ------
सूत्र –5.2 + 5.6 +[ 6.1, 6.2 ]
सूत्र – 5.6
बिना योग मे उतरे संन्यास में कदम रखना कष्ट प्रद होता है और बिना योग संन्यास में पहुँचना कठिन भी है //
सूत्र – 5.2
कर्म – योग एवं कर्म संन्यास दोनों मुक्ति पथ हैं लेकिन संन्यास से उत्तम कर्म योग है//
सूत्र –6.2
कर्म – योग एवं कर्म संन्यास दो नहीं एक के दो नाम हैं , संकल्प धारी कभीं योगी नहीं हो सकता //
गीता सूत्र – 6.1
कर्म त्याग एवं कर्म – ऊर्जा का प्रयोग न करना किसी को संन्यासी नहीं बनाता,कर्म में जब
कर्म – फल की सोच न आती हो तो वह कर्म कर्म योग होता है और वह कर्म – योगी,
कर्म सन्यासी होता है//
अब ऊपर दिए गए सूत्रों का सारांश देखें ….......
बिना कर्म – योग कर्म संन्यास संभव नहीं ----
कर्म में आसक्ति , कामना एवं अन्य भोग तत्त्वों की पकड़ का न होना ही
उन भोग तत्त्वों का संन्यास होता है ------
कर्म होनें में यदि संकल्प हो तो वह भोग कर्म होगा उस कर्म को कर्म योग बनानें में
गुण – तत्त्वों की पकड़ को ढीली करनी पड़ेगी //
कर्म - योग एवं कर्म संन्यास दो नहीं एक यात्रा के दो भाग हैं ;
कर्म योग से यात्रा प्रारम्भ होती है और कर्म संन्यास जब आता है तब वहाँ से अब्यक्त , अब्यय सनातन शाश्वत में छलांग भरनी होती है जो
कोई कृत्य नहीं स्वतः होती है //
गीता बुद्धि - योग की गणित है जिसकी समझ बुद्धि को शांत करके प्रभु के आयाम में
स्थिर कर देती है //
क्या कर रहें हैं ?
क्या करना है ?
कैसे करना है ?
क्यों करना है ?
इन सभी प्रश्नों की गणित का नाम है -----
गीता
====ओम=====
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