गीता अध्याय पांच मे श्लोक 5.8 से 5.10 तक में तत्त्व वित्तु के सम्बन्ध मे बताया गया है /
यहाँ हम गीता के अन्य अध्यायों से कुछ अन्य सूत्रों को देखते हैं जिनका सीधा सम्बन्ध तत्त्व वित्तु से है /
सूत्र –18.51 – 18.55
ब्रह्म भूत योगी वह है जिसकी इन्द्रियाँ बश में हों , मन – बुद्धि शांत हों एवं संदेह रहित हों , जो काम , कामना , क्रोध , लोभ , मोह , भय , आलस्य एवं अहंकार रहित हो / तत्त्व वित्तु या ब्रह्म भूत योगी परा भक्त होता है /
सूत्र – 8.14 – 8.15
यहाँ भी लगभग वही बातें बतायी गयी हैं जिनको अभीं हम ऊपर देखे हैं /
सूत्र – 13.8 – 13.10
यहाँ प्रभु सूत्र – 18.51 – 18.55 तक की बातों को ग्यानी की पहचान के रूप में बता रहे हैं /
गीता सूत्र –16.1 – 16.3
यहाँ प्रभु कहते हैं … ...
मनुष्यों को दो श्रेणियों में देखा जा सकता है ; दैवी प्रकृति के लोग और आसुरी प्रकृति के लोग /
दैवी प्रकृति के लोगों की पहचान के सम्बन्ध में वही बातें बतायी गयी हैं जिनको आप ऊपर अभीं गीता सूत्र 18.51 – 18.55 के सन्दर्भ में देखा है //
गीता सूत्र –10.4 – 10.5
यहाँ प्रभु कहते हैं … ...
मेरी कृपा से समभाव एवं स्थिर – प्रज्ञता मिलाती है //
श्री नानकजी साहिब कहते हैं …...
पंचा का गुरू एक धियानु
होश मय रहना चाहते हो तो -----
ध्यान को अपना गुरू बना लो //
ध्यान में प्रभु के प्रसाद रूप में गुणातीत की मन – बुद्धि की स्थिति मिलती है जिसमें
परम सत्य का बोध होता है//
=====ओम========
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