Sunday, July 17, 2011

गीता अध्याय पांच भाग सात


गीता अध्याय – 05 के अगले सूत्र -----


गीता सूत्र –5.11


कर्म के तीन माध्यम हैं ; तन , मन एवं बुद्धि / योगी अपनें तन , मन एवं बुद्धि से जो भी करता है वह कर्म उसे और निर्मल बना देता है अर्थात … ...


योगी के सभी कर्म ब्रह्म से ब्रह्म में ब्रह्म के लिए होते हैं //


गीता सूत्र –5.12


कामना रहित कर्म मनुष्य को भोग से बाधते हैं और कामना रहित कर्म शांति का श्रोत है //


गीता सूत्र –5.13


सर्व कर्माणि मनसा संयस्य आस्ते सुखं वशी /


नव द्वारे पुरे देही न एव कुर्वन् न् कारएन् //


जिस योगी का मन कर्म में भाव रहित रहता हो उस योगी का आत्मा नौ द्वारे वाले देह में निर्विकार रहता है //


यह सूत्र कुछ संदेह पैदा करता है ;


गीता में अधिकाँश जगहों पर आत्मा को यह कहा गया है की यह कभीं विकार युक्त नहीं होता लेकिन एक ऐसे योगियों का भी दल है जैसे पतांजलि जो यह मानते हैं की आत्मा को निर्विकार बनाना केवल ध्यान से संभव नहीं हठ – योग से गुजरना जरूरी है और इस दर्शन के आधार पर हठ – योगियों नें एनेक विधियों को सामनें रखा / आत्मा के दो रूपो को यहाँ बताया जाता है ; परागात्मा [ वह जो भोग में आसक्त आत्मा होता है ] और प्रत्यगात्मा [ निर्विकार आत्मा ] // गीता का आत्मा - परमात्मा


करता एवं अकर्ता [ द्रष्टा ] दोनों हैं लेकिन ध्यान के लिए एक मार ग को ही अपनाना उत्तम रहता है /


गीता सूत्र –14.11


यहाँ प्रभु श्री कृष्ण कह रहे हैं … ...


सात्त्विक गुण में कोई योगी तब पहुँचता है जब उसके देह के सभीं द्वार बंद हो चुके होते हैं//


गीता के दो सूत्र;सूत्र- 5.13एवं सूत्र –14.11ध्यान के लिए परम सूत्र हैं,अगर आप को ध्यान में रूचि हो तो आप इन दो सूत्रों को पकड़ कर रखें//




====ओम=====


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