गीत अध्याय पांच में हम आगे देखनें जा रहे हैं निम्न श्लोकों को ------
पिछले अंक में हमनें देखा था श्लोक – 5.13 को और अब इस श्लोक के सम्बन्ध में गीता के कुछ और सूत्रों को देखते हैं /
सूत्र – 2.60
यहाँ प्रभु कह रहे हैं …...
अर्जुन , मन आसक्त इन्द्रिय का गुलाम होता है //
mind is controlled by impetuous sense
सूत्र – 3.7
यह सूत्र कहता है …...
इन्द्रिय नियोजन मन से होना चाहिए //
senses should be controlled by the mind
सूत्र – 2.67
यह सूत्र कह रहा है ….
बिषय में आसक्त इन्द्रिय मन के माध्यम से प्रज्ञा को हर लेती है //
a sense attached to passion carries away Pragya [ the pure intelligence ] through mind
अब सोचना है इन बातों पर----
गीत कहता है … ..
मन इन्द्रियों का गुलाम है
इन्द्रियाँ मन माध्यम से प्रज्ञा को भी प्रभावित करती हैं
और
इन्द्रियों का नियंत्रण मन से होना चाहिए//
इस बिषय,इन्द्रिय,मन,बुद्धि एवं प्रज्ञा समीकरण को कैसे हल किया जाए?
बिषय के प्रति होश मय होना इन्द्रिय – निग्रह है
इन्ग्रिय निग्रह ही मन – योग है
मन – योग को ही अभ्यास – योग कहते हैं
मन अभ्यास योग में मन को आत्मा-परमात्मा कर केंद्रित करनें का अभ्यास करना होता है
शांत मन प्रभु का अंश है[इंडियाणाम् मनश्चास्मि]
शांत मन निर्विकार होता है
और निर्विकार मन ही प्रभु का द्वार है//
====ओम=======
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