Sunday, July 24, 2011

गीता अध्याय पांच भाग आठ

गीत अध्याय पांच में हम आगे देखनें जा रहे हैं निम्न श्लोकों को ------

पिछले अंक में हमनें देखा था श्लोक – 5.13 को और अब इस श्लोक के सम्बन्ध में गीता के कुछ और सूत्रों को देखते हैं /

सूत्र – 2.60

यहाँ प्रभु कह रहे हैं …...

अर्जुन , मन आसक्त इन्द्रिय का गुलाम होता है //

mind is controlled by impetuous sense

सूत्र – 3.7

यह सूत्र कहता है …...

इन्द्रिय नियोजन मन से होना चाहिए //

senses should be controlled by the mind

सूत्र – 2.67

यह सूत्र कह रहा है ….

बिषय में आसक्त इन्द्रिय मन के माध्यम से प्रज्ञा को हर लेती है //

a sense attached to passion carries away Pragya [ the pure intelligence ] through mind


अब सोचना है इन बातों पर----

गीत कहता है … ..

मन इन्द्रियों का गुलाम है

इन्द्रियाँ मन माध्यम से प्रज्ञा को भी प्रभावित करती हैं

और

इन्द्रियों का नियंत्रण मन से होना चाहिए//

इस बिषय,इन्द्रिय,मन,बुद्धि एवं प्रज्ञा समीकरण को कैसे हल किया जाए?

बिषय के प्रति होश मय होना इन्द्रिय – निग्रह है

इन्ग्रिय निग्रह ही मन – योग है

मन – योग को ही अभ्यास – योग कहते हैं

मन अभ्यास योग में मन को आत्मा-परमात्मा कर केंद्रित करनें का अभ्यास करना होता है

शांत मन प्रभु का अंश है[इंडियाणाम् मनश्चास्मि]

शांत मन निर्विकार होता है

और निर्विकार मन ही प्रभु का द्वार है//


====ओम=======


No comments:

Post a Comment

Followers