Monday, April 2, 2012

गीता और हम में गीता सूत्र एक

गीता का पहला श्लोक

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः

मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय

धृतराष्ट्र पूछ रहे हैं------

संजय!धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्र समवेता:युयुत्सवः

मामकाः च एव पाण्डवा:किम् अकुर्वत//

अर्थात

" हे संजय ! धर्म क्षेत्र कुरुक्षेत्र में एकत्रित युद्ध की इच्छा वाले मेरे और पांडु के पुत्रोंनें क्या किया ?”

यह बात धृतराष्ट्र जी अपनें सहयोगी संजय से पूछ रहे हैं ; धृतराष्ट्र कौरवों के पिता हैं और जन्म से अंधे हैं /

धर्म क्षेत्र कुरुक्षेत्र

कुरुक्षेत्र कैसे धर्म क्षेत्र है?

पश्चिम में सिंध नदी के आसपास से लेकर पूर्व में बंगाल की खाडी तक किसी न किसी रूप में आर्य लोगों की उपस्थिति का संकेत मिलता है जिसमें गंधार , मुल्तान , कराची , तक्षशिला , पुरुषपुर

[ पेशावर ], हिसार , कुरुक्षेत्र , दिल्ली , मेरठ , कौसल [ अयोध्या के आस पास का क्षेत्र जैसे श्रावस्ती , गोरखपुर , काशी , मिथिला , मगध एवं अंग [ बंगाल का क्षेत्र + ओडिशा का क्षेत्र ] का नाम सर्बोपरी है / वेदों में कुरुक्षेत्र को स्वर्ग में रहनें वालों का तीर्थ कहा गया है लेकिन हिंदू शात्रों में 07 तीर्थों का नाम है जिसमें कुरुक्षेत्र का नाम नहीं है और जो हिंदू तीर्थ हैं , उनका नाम कुछ इस प्रकार से है … ...

काशी,द्वारका,अयोध्या,मथुरा,उज्जैन,हरिद्वार,कांची

कुरुक्षेत्र का समय - समय पर नाम बदलता रहा है जैसे उत्तरावेदी , ब्रह्म वेदी एवं धर्मक्षेत्र आदि /

चीनी दार्शनिक XUANG XANG यहाँ 636 AD में आये थे और यहाँ पर अनेक बौद्ध साधना गृहों के होनें की बात लिखी है लेकिन आज एक भी नहीं दिखता , कहाँ गए ये सब साधना गृह ?

अशोक[ 273 BCE – 232 BCE ]से हर्षवर्धन[ 590 – 657 CE ]तक कुरुक्षेत्र बौद्ध मान्यता वाले बादशाहों के अधीन रहा है लेकिन आज यहाँ बुद्ध – धर्म से सम्बंधित किसी साधना-गृह को देखना कठिन है/

अगले अंक में हम कुछ और बातो को देखेंगे

====ओम्=======



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