Sunday, April 15, 2012

गीता में अर्जुन का समर्पण

गीता श्लोक – 18.66 से श्लोक 18.73 तक

पिछले अंक में हमनें भक्ति के सम्बन्ध में गीता सूत्र – 18.66 को देखा जहाँ प्रभु श्री कृष्ण अर्जुन को कह रहे हैं , सभीं धर्मों को त्याग कर तुम मेर शरण में आ जा , मैं तेरे को सभीं पापों से मुक्त कर दूंगा / ,,

आइये अब देखते हैं अगले श्लोकों को … .......

श्लोक –18.67

प्रभु कह रहे हैं , वह जिनकी आस्था तप में नहीं , भक्ति में नहीं और जो नास्तिक हैं उनके मध्य में गीता ज्ञान की चर्चा करना उचित नहीं / “

श्लोक –18.68

इस श्लोक के माध्यम से प्रभु कह रहे हैं , मेरे परम प्रेम में डूबे भक्तों के मध्य जो गीता की चर्चा प्रीती में डूब कर करता है वह मुझे प्राप्त करता है / “

श्लोक –18.69

वह जो मेरे भक्तों को गीता सुनाता है वह मेरा परम प्रिय होता है , ऎसी बात श्री कृष्ण कह रहे हैं /

श्लोक –18.70

प्रभु यहाँ कह रहे हैं , वह जो धर्म रूप में मेरे एवं तेरे सम्बादों को गीता के माध्याम से समझेगा , वहज्ञानी होगा / “

श्लोक –18.71

प्रभु यहाँ कह रहे हैं , जो श्रद्धामें डूबा हुआ और दोष रहित हो कर गीता का श्रवण करता है , वह सभीं पापों से मुक्त हो जाता है / “

श्लोक – 18.72

यह सूत्र प्रभु का गीता में आखिरी सूत्र है , यहाँ प्रभु कह रहे हैं , क्या तूनें इस गीता शास्त्र को स्थिर मन से सुना ? और क्या तेराअज्ञान जनित मोहसमाप्त हुआ ? “

गीता श्लोक –18.73

यह श्लोक अर्जुन का गीता में आखिरी श्लोक है जहाँ अर्जुन प्रभु को धन्यबाद करते हुए कह रहे हैं , हे प्रभु ! आप की कृपा से मेरा मह नष्ट हो गया है , मैनें अपनी खोयी हुयी स्मृति प्राप्त कर ली है , अब मैं संदेहरहित स्थिति में हूँ और आप के आज्ञा का पालन करूँगा / “

गीता के आखिरी सात सूत्रों को आप यहाँ देखे जिनका सम्बन्ध प्रभु श्री कृष्ण एवं अर्जुन से है और उनके भावों को भी देखा , अब समय आ गया है कि आप इन सूत्रों से या तो संदेह में यात्रा करें या संदेह रहित हो कर अर्जुन की भांती प्रभु सपर्पित हो कर संसार का द्रष्टा बन कर मजा लें , परमानंद का /


==== ओम्=====


No comments:

Post a Comment

Followers