गीता में अर्जुन का पहला प्रश्न
गीता श्लोक –2.54
स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव
स्थितधी:किम् प्रभाषेत किम् आसीत व्रजेत किम्
हे केशव ! समाधि में स्थित परमात्मा को प्राप्त स्थिरप्रज्ञ पुरुष का क्या लक्षण है ? वह कैसे बोलता
है ? कैसे बैठता है ? और कैसे चलता है ?
गीता में अर्जुन के इस प्रश्न के सम्बन्ध में प्रभु श्लोक – 2.55 से 2.72 तक के सूत्रों का प्रयोग किया है /
अर्जुन के प्रश्न को कम से कम पांच बार आप पढ़ें और तब इन बातों पर सोचें … ....
अर्जुन को यह पता नहीं कि स्थिरप्रज्ञ की पहचान क्या है लेकिन अर्जुन यह जानते हैं की … ...
स्थिर प्रज्ञ-----
समाधि में स्थित होता है … ..
परमात्मा की अनुभूति उसे मिलती रहती है
क्या इन दो बातों के ज्ञान से अर्जुन तृप्त नहीं कि आगे वे जानना चाह रहे हैं … ....
स्थिर प्रज्ञ कैसे बोलता है? ,कैसे बैठता है?और कैसे चलता है?
यहाँ अर्जुन की बातों से एक बात तो स्पष्ट है कि अर्जुन समाधि शब्द से परिचित हैं लेकिन समाधि का उनको कोई अनुभूति नहीं है लेकिन इतना उनको जरुर मालूम है कि ऐसा योगी परमात्मा मय होता जरुर है /
आगे आप गीता के माध्यम से अर्जुन के इस प्रश्न के सम्बन्ध में देखें
स्थिर प्रज्ञ योगी वह होता है जो कामना,क्रोध,लोभ,मोह,भय एवं अहँकार रहित होता है//
==== ओम्=====
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