गीता सांख्य – योग की गणित है
शून्य में अनंत और अनंत में शून्य की गणित गीता गणित है/
मन की शून्यता में अनंत की अनुभूति होती है और अनंत रूपी संसार में शून्यता की अनुभूति ही ब्रह्म की अनुभूति है/हिंदू परम्परा में वैशेषिका,न्याय,सांख्य,योग,वेदान्त एवं पूर्व मिमांस – छः मार्गो को बताया गया है जो असत् से सत् में पहुंचानें का प्रयाश करते हैं/हिंदू लोग नास्तिक वर्ग में जैन,बुद्ध एवं चार्वाक को रखते हैं/
कथा उपनिषद [ 400 BCE ] में Proto Samkhya का सन्दर्भ मिलता है लेकिन ईश्वर कृष्ण
[ 350 CE – 350 C.E ] Saamkhya Karika लिखा जिसको सांख्य – योग का मूल ग्रन्थ कहा जा
सकता है / कपिल मुनि को सांख्य – योग का जनक कहते हैं और इनका उल्लेख गीता श्लोक 10.26 में भी किया गया है / सांख्य – योग का प्रचार – प्रसार 09 CCE के आस – पास अधिक रहा है और लगभग उसी समय आदि शंकराचार्य [ 788 – 820 CE ] का अद्वैत्य बाद भारत में फैलानें लगा और सांख्य एवं वैशेषिक जैसे वैज्ञानिक दर्शनों का लोप होनें लगा /
सांख्य कहता है ----
Kowlege could be attained through …...
[A] Direct perception
[B] Logical inference
{C} Verbal testimony
सांख्य कहता है , प्रकृति - पुरुष से संसार का अस्तित्व है और गीता श्लोक – 15.16 कहता है -----
द्वौ इमौ पुरुषौ लोके क्षरः च अक्षरः एव च/
क्षरः सर्वाणि भूतानि कूटस्थः अक्षरः उच्यते//
संसार में नाशवान् एवं अनाशवान् दो प्रकार के पुरुष हैं सभीं जीवों के देह तो नाशवान हैं और आत्मा अनाशवान है /
Samkhya believes in plurality of consciousness but Gita differs it , it says consciousness is one .
संख्या - योग के तत्त्व हैं पञ्च महाभूत , मन , बुद्धि , अहँकार , पञ्च ज्ञानेन्द्रियाँ , पञ्च कर्म इन्द्रियाँ , पञ्च बिषय और चेतना लेकिन गीता में इन तत्त्वों के साथ आत्मा एवं परमात्मा को भी जोड़ दिया गया है / गीता की गणित सांख्य की गणित से अधिक स्पष्ट है जहाँ संदेह की कोई गुंजाइश नहीं दिखती लेकिन सांख्य में संदेह की जगह है / गीता अपनें में वैशेषिका , न्याय , सांख्य , भक्ति सबकी आत्मा को धारण किये हुए है और स्वर्ग से परे अपनी निगाह रखनें के कारण इसे वेदान्त भी कहते
हैं / गीता में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं -------
गीता श्लोक –2.42 , 2,43 , 2,44 2.45 , 2.46
वेद भोग प्राप्ति के अनेक साधनों की प्रशंसा करते हैं और अनेक यज्ञों के माध्यम से कामना प्राप्ति के उपाय भी बताते हैं लेकिन हे अर्जुन तूं इन बातों से ऊपर उठो और ब्राहमण बन जाओ / ब्राह्मण वह है जो ब्रह्म में डूबा रहता है और उसका वेदों से नाममात्र का सम्बन्ध रह जाता है /
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