Tuesday, April 10, 2012

भक्ति भाग एक

भक्ति भाग एक

क्या है भक्ति?

भारतीय आध्यात्मिक धारा में छः उप धाराओं की बातें हमें शास्त्रों में मिलती हैं - न्याय , वैशेषिक , सांख्य , पूर्व मिमांस , योग एवं वेदान्त / यहाँ भक्ति का कोई नाम नहीं जबकि हिंदू परम्परा में जहाँ देखो वहीं भक्ति के अनेक रूप देखनें को मिल रहे हैं / भक्ति आखिर है क्या ? क्यों लोग भक्ति को अपनानें में एक मिनट भी नहीं सोचते और यदि योग , वेदान्त , न्याय , मिमांश आदि की चर्चा की जाए तो लोग अपनें - अपनें कान बंद कर लेते हैं / वह जिसका एक छोर साकार में हो और दूसरा छोर निर्विकार में , वह जिस्सका एक छोर ज्ञेय हो और दूसरा अज्ञेय हो , वह जिसका एक छोर संसार में हो और दूसरा अनंत में , वह जो अपरा से प्रारम्भ हो कर परा में पहुंचाता हो , वह है भक्ति /

भक्ति स्व का कृत्य नहीं प्रभु का प्रसाद है ; भक्ति देखनें में जितनी सरल दिखती है साधना की दृष्टि वह उतनी ही कठिन है / न्याय , मिमांस , बैशेषिका , सांख्य , योग एवं वेदान्त सभीं मार्ग जहाँ अंततः पहुँच कर अपना अस्तित्व खो देते हैं उसका नाम हैपरा भक्ति / परा भक्ति साधनाओं का फल है जो साधक को कटी पतंग सा बना कर रखती है और लोगों की निगाह में वह भक्त दुखी दिखता है पर वह होता है परम आनंद में / मीरा , नानक , चैतन्य , कबीर , रहीम जिस भी भक्त को आप देखें आप समझेगे की इनके जीवन में दुःख के अलावा और कुछ नहीं पर उनकी निगाह में उनका जीवन परम आनंद में होता है /

भक्ति का प्रारंभ अपरा अर्थात साकार से होता है और जैसे-जैसे भक्ति पकती जाती है साकार निराकार में रूपांतरित होता जाता है और अंततः न भक्त बचता है और न साकार माध्यम,जो रहता है वह होता है शुद्ध चेतना/

रामकृष्ण परमहंस जी के लिए माँ काली की मूर्ति एक पत्थर की मूर्ति नहीं थी , वे उस मूर्ति के साथ वार्तालाप करते रहते थे / कहते हैं मेवाड का राजा जब मीरा को द्वारिका से वापिस लानें के लिए अपनें सेनापति को भेजा तब मीरा बोली , आप लोग यहीं बाहर रुके , मैं चलूंगी , जरुर चलूंगी , आप सब के प्यार को मैं ठुकरा नहीं सकती लेकिन पहले कन्हैया से पूछ लू / मीरा द्वारकाधीश के सामनें गयी , अपनी आँखे बंद की और उस मूर्ति में समा गयी और आज तक बाहर न निकल सकी / लोग कहते हैं , यह कहानी सच्चाई से दूर है लेकिन ऎसी बात वे कहते हैं जो बुद्धि केंद्रित हैं ; जहाँ बुद्धि आप को चला रही हो वह मार्ग सदेह रहित नहीं हो सकता और जहाँ श्रद्धा हो वहाँ संदेह नहीं और वहा जो रहता है वह सत्य ही होता है /


=====ओम्=====


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