गीता-श्लोक 4.29- 4.30 के माध्यम से श्री कृष्ण एक ऐसी ध्यान विधि दे रहे हैं जिसको आप महावीर-बुद्ध से ले कर आज तक के लोग किसी न किसी रूप में अभ्यास करा रहें हैं । यहाँ इन दो श्लोकों में तीन ध्यान की विधियां बताई गयी हैं जो सीधे श्वास से सम्बन्ध रखती हैं ।
ध्यान-विधि 2.1
अपांन वायु पर ध्यान करना
जब हम अपांन वायु को बाहर छोड़ते हैं तब हमारी नाभि नीचे की ओर जाती है और जब प्राण-वायु को ग्रहण करते हैं तब नाभि ऊपर की ओर उठती है । जब नाभि नीचे की ओर जानें लगे और पूरी तरह नीचे हो तब उस स्थान पर अपनी ऊर्जा को केंद्रित करना चाहिए या नाशिका के अगले भाग पर ध्यान करना चाहिए जहाँ से अन्दर की वायु बाहर निकलती है ।
प्राण वायु पर ध्यान करना
प्राण वायु जब ग्रहण की जाती है तब नाभी नीचे से ऊपर की ओर उठती है अतः नाभि के उपरी स्थिति पर
ध्यान को केंद्रित करना चाहिए या नाशिका के उस भाग पर जहाँ से वायु को ग्रहण किया जा रहा हो ।
ऊपर की दोनों बिधियों को मिला कर बुद्ध की विपत्सना बिधि बनती है जिसको करके अनेक भिक्षुक
निर्वाण को प्राप्त किया था ।
प्राण पर ध्यान करना
गीता श्लोक 4.29-4.30 में तीसरी ध्यान - विधि है --प्राण पर ध्यान करनें का। यहाँ बताया जा रहा है की श्वास को रोक कर प्राण को प्राण में देखते रहना । यह विधि खतरनाक विधि है अतः बिना योग्य गुरु के इस ध्यान में नहीं उतरना चाहिए । यहाँ एकबात की ओर इशारा करना मैं उचित समझता हूँ ---आप इस बात को समझलें की जब नाशिका से श्वास लेना बंद हो जाता है तब अन्य ज्ञानेन्द्रियाँ इस काम को करनें लगाती हैं जैसे कान, आँखें और त्वचा आदि । समाधि में उतरे योगी को डाक्टर लोग मृत घोषित कर देते हैं क्योंकि उसकी ह्रदय की धड़कन बंद होती है लेकिन वह योगी मृत नहीं होता । समाधि में स्थूल शरीर निर्जीव सा हो जाता है , शरीर को समझनें वाले सभी वैज्ञानिक उपकरण असफल हो जाते हैंलेकिन फिरभी वह योगी जिंदा होता है ।
इस प्रकार के अनेक उदाहरण हैं जैसे स्वामी योगा नन्द आदि । स्वामी योगा नन्द ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी तथा अनेक शोध संस्थाओं में अपनें योग का प्रदर्शन किया सभी जगह उनको मृत पाया गया लेकिन वे जिदा थे ।
हम उम्मीद करते हैं की गीता की ध्यान विधियाँ आप को गीता - ध्यान में उतारेंगी ।
======ॐ========
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