गीता श्लोक 13.24 कहता है ---- ध्यान में जब बुद्धि निर्विकार हो जाती है तब ह्रदय का कपाट खुलता है और
परमात्मा की आहट सुनाई पड़नें लगती है क्योंकि आत्मा- परमात्मा का केन्द्र ह्रदय है [ गीता सूत्र - 10.20, 13.17, 13.22, 15.7, 15.11, 15.15, 18.61 ] तथा जब ऐसा होता है तब देह की ऊर्जा लम्बवत ऊपर की ओर
उठनें लगती है एवं मन-बुद्धि संसार में रूचि नहीं रखते ।
विज्ञान एवं दर्शन में बुनियादी अन्तर है ; विज्ञान सोच के केन्द्र के रूप में मष्तिस्क को समझता है जहाँ से
भाव उठते हैं और दर्शन में भावों का केन्द्र ह्रदय है । अमेरिका के ह्रदय विशेषज्ञ कहते हैं ---अंग जब बदले
जाते हैं तब अंग देनें वाले का स्वभाव भी उस अंग के साथ लेनें वाले को मिल जाता है --यह शत प्रतिशत तो
नहीं होता लेकिन ऐसी बात शोध कर्ताओं को देखनें को मिली है , विशेष रूप से ह्रदय - बदलाव की
स्थितिओं में । गीता इस सम्बन्ध में कहता है ---तीन गुणों का हर पल बदलता एक समीकरण हर इन्शान
में होता है , गुणों से स्वभाव बनता है और स्वभाव से भाव उठते हैं तथा भावानुकूल कर्म होता है ।
गुनरहस्य वैज्ञानिकों को मदत कर सकता है लेकिन वैज्ञानिक गीता को कैसे अपनाए ? गीता की स्पष्टता को
देखिये --गीता कहता है ...गुन कर्म-करता हैं और करता भाव अंहकार का छाया है [गीता-3।27] । क्या आप
इस से अधिक स्पष्ट बात कहीं और पा सकते हैं ? अब आप गीता का एक और सूत्र देखिये [ गीता-6।27] ,
गीता कहता है ...राजस गुन पभु के मार्ग में बहुत बड़ा अवरोध है । गीता के ऊपर बताये दो सूत्रों को जो अपना
लिया वह हो गया साक्षी-द्रष्टा और की खोज स्वतः समात हो जायेगी । गीता - सूत्र 14.19,14.23 कहते हैं - गुणों
को करता समझनें वाला द्रष्टा एवं साक्षी है ।
गीता में उलझिए नहीं गीता के कुछ सूत्रों को अपनाइए जो आप को भोग के बंधनों को स्पष्ट करके आप की दिशा
बदल देंगे और आप संसार के आयाम से प्रभु के आयाम में पहुँच सकते हैं ।
======ॐ=========
Sunday, October 18, 2009
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