Sunday, October 25, 2009

गीत ध्यान विधि - 4

तीसरी आँख पर ध्यान करनें की बात श्री कृष्ण गीता-श्लोक 5.27- 5.28 के माध्यम से करते हैं , तो आईये देखते हैं इस विधि को ।
श्री कृष्ण कहते हैं---ध्यान के समय अपान-वायु एवंम प्राण - वायु सम हों, शरीर के किसी भी भाग में कोई तनाव न हो तथा मन विचार शून्य स्थिति में जब आजाये तब मन-बिद्धि की ओर से ऊर्जा को धीरे-धीर दोनों आंखों के मध्य में नाक की सीधायी में सीधे ऊपर की ओर ललाट के मध्य तीसरी आँख पर केंद्रित करना चाहिए।
जब यह ध्यान होता है तब वह योगी इच्छा, भय तथा क्रोध से मुक्त हो जाता है । यहाँ इस विधि में तीन बातें समझनें के लिए हैं ----
१- प्राण-वायु , अपान-वायु तथा ह्रदय की धड़कन का आपसी सम्बन्ध क्या है ?
२- इच्छा , भय एवं क्रोध मुक्त होना क्या है ?
३- तीसरी आँख क्या है ?
१.१ प्राण-वायु एवं अपांन - वायु असामान्य तब होती हैं जब मन में विचार उठनें की गति तेज होती है और ऐसी स्थिति में ह्रदय की धड़कन भी स्थिर नहीं रह पाती । जब तक मन शांत नहीं होता तब तक श्वाशें सम नहीं हो सकती और ह्रदय की धड़कन भी सामान्य नहीं रह सकती ।
२.२ इच्छा एवं क्रोध राजस गुन के तत्त्व हैं और भय तामस गुन का तत्त्व है , गीता कहना चाह रहा है की
तीसरी आँख के ध्यान से योगी राजस एवम तामस गुणों के प्रभाव से बच सकता है जो परमात्मा के
मार्ग में सबसे बड़े रुकावट हैं ।
३.१ तीसरी आँख को तंत्र में आज्ञा-चक्र कहते हैं जो वह माध्यम है जिस से योगी त्रिकाल दर्शी बन जाता है ।
आज्ञा चक्र जब सक्रीय होता है तब उस योगी ऐ लिए निराकार सूचनाएं साकार हो उठती हैं ।
आज्ञा-चक्र की सक्रियता यातो बुद्ध बनाती है या पागल , बीच की कोई संभावना नहीं बचती।
===ॐ======

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