Friday, October 23, 2009

गीता ध्यान विधि-3

गीता-श्लोक 6.33,6.34 के माध्यम से अर्जुन पूछते हैं----हे प्रभू ! मैं अपनें चंचल मन के कारण आप की बातों को समझनें में असमर्थ हूँ अतः आप मुझे उचित रास्ता बताएं ।
श्री कृष्ण अगले श्लोक 6.35 में उत्तर के रूप में कहते हैं---मन की चंचलता पर नियंत्रण करनें के लिए दो
उपाय हैं ; एक है , अभ्यास करना और दूसरा है बैराग्य का घटित होना।
अभ्यास के संबंधमें आप गीता - श्लोक 6.26 को देखें जहाँ प्रभू कहते हैं ---मन जहाँ-जहाँ उलझता हो वहाँ-वहाँ से उसे उठाकर परमात्मा पर केंद्रित करनें का अभ्यास करना चाहिए , ऐसा करनें से मन की आब्रित्ति मंद पड़ जाती है । इस सम्बन्ध में रमन महर्षी कहते हैं--विचारों के मूल को पकड़ना ही ध्यान है , लेकिन विचारों का मूल क्या है ?
गीता-श्लोक 7.12- 7.13 कहते हैं----विचारों उठाना परमात्मा से होता है लेकिन परमात्मा गुनातीत एवं
भावातीत है अर्थात परमात्मा पर मन को केंद्रित करनें की ही बात को रमन महर्षी भी कह रहे हैं ।
ध्यान,तप, साधना एवं योग चाहे आप कोई एक मार्ग अपनाएं सब का लक्ष्य एक है --मन को नियंत्रित
करना। जब तक मन नियंत्रित नहीं होता तब तक साधना पक नहीं सकती अतः मन को नियंत्रित करना
ही साधना का उद्देश्य होता है ।
====ॐ=======

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