गीता में परम की अनुभूति के लिए परम प्रकाश शब्द को प्रयोग किया गया है, आख़िर परम प्रकाश है क्या?
जर्मनी के महान कवि गेटे अपनें आखी समय में आँखें खोली और बोले----बंद करदो सभीं दीपकों को , अब मैं
परम प्रकाश को देख रहा हूँ । आइये! अब हम गीता में परम प्रकाश को समझनें का असफल प्रयाश करते हैं।
गीता श्लोक 13.33 15.6 जब आप एक साथ देखेंगे तो जो आप को मिलेगा वह इस प्रकार होगा ..........
जैसे सभीं लोक [ गीता तीन लोकों की बात करता है , यहाँ आप देखें श्लोक 3.22,7.14 ] सूर्य से प्रकाशित हैं वैसे
यह देह जीवात्मा से प्रकाशित है लेकिन परम धाम स्वप्रकाषित है। गीता श्लोक 7.8,7.9,9.19,15.12 में परम
श्री कृष्ण कहते हैं ---सूर्य-चन्द्रमा का प्रकाश एवं सूर्य के प्रकाश का तेज तथा अग्नि का तेज , मैं हूँ । प्रकाश में
उष्मा की बात गीता हजारों साल पहले किया है लेकीन इसका विज्ञान २०वी सताब्दी में मैक्स प्लैंक , आइंस्टाइन ,सी वी रमन जैसे कुछ वैज्ञानिकों नें बनाया। वैज्ञानिक दृष्टि से प्रकाश को हम अगले अंक में देखेंगे ।
=======ॐ=======
Sunday, October 11, 2009
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