अपरा भक्ति के माध्यमों में ध्वनी एक प्रमुख माध्यम है ।
गीता में श्री कृष्ण कहते हैं ---------
मुनियों में वेद व्यास [ गीता- 10.37 ], छंदों में गायत्री [गीता- 10.35 ], तीनों वेद [गीता-9.17 ], वेदों में
ॐ [गीता- 7.8 , 9.17 ], मैं हूँ ।
गीता श्लोक 7.8 में एक और महत्वपूर्ण बात यह है --शब्द का स्वभाव है आकाश में रहना ।
अब आप गीता की इन बातों पर सोचिये जितना सोच सकते हों लेकिन अंततः आप किसी भी नतीजे पर नहीं
पहुचनें वाले ।
ध्वनी क्या है ?, किस से है , और कहां नहीं है? को वैज्ञानिक पिछले तीन सौ वर्षों से जाननें की कोशिश में
उलझे पड़े हैं । वैज्ञानिक खोज जितनी आगे बढती है वैज्ञानिक और समस्याओं में उलझ जा रहे हैं ।
Pythagorus[569-475 BCE ] जब विज्ञान शब्द भी नहीं था उस समय बोले----सभी ग्रहों की अपनी-अपनी धुनें हैं । पाइथागोरस की इस बात से आश्चर्य होता है क्योंकि उस समय तक यह भी पता न था की ग्रहों में गति है ।
विज्ञान यह कहते हुए ब्रह्मांड का नक्शा बनानें में ब्यस्त है की यहाँ अन गिनत तारे हैं, अन गिनत तारा मंडल
हैं, अन गिनत गलेक्सीज हैं और न जानें और क्या-क्या है ? वैज्ञानिक ब्रह्माण्ड जहाँ यह सब है वह सिमित है और उसका आदि- अंत भी है। वैज्ञानिक ब्रह्मांड एक आर्केस्ट्रा जैसा है जहाँ अनंत ग्रहों , उपग्रहों तथा अन्यों की ध्वनियाँ गूँज रही हैं । क्या आप ऐसा नहीं समझते --ब्रह्माण्ड की ये सभी ध्वनियाँ मिल कर एक अलग ध्वनी का निर्माण करती होंगी ? वेदों में ॐ तथा छंदों में गायत्री से निकलनें वाली धुन वही धुन है जो सीधे ब्रह्म से जोड़ती है और ब्रह्म ब्रह्माण्ड का नाभि केन्द्र है । अभी - अभी आस्ट्रेलिया के वैज्ञानिक पृथ्वी की धुन को पकडनें में कामयाब हुए हैं ।
गीत- संगीत , नृत्य , भजन- कीर्तन आदि में जो धुन गूंजती है और जो हम सब के अन्तः करन की ऊर्जा
को कम्पित कर देती है वह ध्वनी ॐ ध्वनी ही है ।
=====ॐ======
Saturday, October 31, 2009
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