Tuesday, April 27, 2021

गीता श्लोक : 8.3 , ब्रह्म क्या है ? क्रमशः

  ब्रह्म - माया और आत्मा ( जीवात्मा ) - परमात्मा वेदांत दर्शन के स्तम्भ हैं और इनको समझने वाला वेदांती होता है । 

आप भारतीय प्रमुख 10 दर्शनों में से प्रमुख दर्शन वेदांत के ब्रह्म को गीता के 09 श्लोकों के माध्यम से समझने का यत्न कर सकते हैं । आइये अब तैरते हैं , इन 09 श्लोकों में 👇


Sunday, April 25, 2021

अक्षरं ब्रह्म परमं - गीता - 8.3

 गीता : 8.1 और 8.2 में अर्जुन 07 प्रश्न करते हैं जिनमें पहला प्रश्न है , ब्रह्म क्या है ?

यहाँ आज इस संदर्भ में कुछ बातें बताई जा रही हैं शेष को अगले अंकों में देखा जा सकेगा ।

👌 अब देखिये निम्न स्लाइड को ⬇️


// ॐ //

Thursday, April 22, 2021

गीता अध्याय - 8 श्लोक : 1, 2

 गीता अध्याय : 8 के प्रारंभिक 02 श्लोकों के माध्यम से अर्जुन अपना सातवाँ प्रश्न कर रहे हैं ।

अर्जुन के इस प्रश्न से सम्बंधित प्रभु श्री कृष्ण के अगले 28 श्लोक ( अध्याय : 8 श्लोक - 3 से अध्याय : 9 श्लोक - 34 तक ) हैं ।

आइये , लेते हैं , एक डुबकी गीता श्लोक : 8.1 और श्लोक : 8.2 के अनंत सागर में ⤵️


Tuesday, April 20, 2021

गीता अध्याय - 7 सार

 गीता अध्याय : 7 , अध्याय : 6 का क्रमशः है । अध्याय : 6 श्लोक :  37 - 39में अर्जुन जानना चाहते हैं , " श्रद्धावान पर असंयमी योगी का योग खंडित स्थिति में जब मृत्यु हो जाती है तब  वह भगवत् प्राप्ति न करके कौन सी गति प्राप्त करता है ? , इस जिज्ञासा के सम्बन्ध में गीता : 6.40 - गीता : 7.30 तक के 38 श्लोक प्रभु श्री के हैं । 

➡️कुछ और अगले अंक में ⬅️


Saturday, April 17, 2021

गीता श्लोक : 6.23 का शेष भाग

 पिछले अंक की स्लाइड में गीता : 6.23 में दी गयी योग की परिभाषा को देखा गया जिसमें प्रभु कहते हैं , वह जो दुःखों को निर्मूल करे , योग है । अब देखते हैं पतंजलियोग दुःख निर्मूल करने की दवा रूप में अष्टांगयोग को बताता है तथा बुद्ध अष्टांग मार्ग को एकमात्र दुःख से निवृत होने की दवा बताते हैं ।

बुद्ध के सभीं अष्टांग तत्त्वों के पहले सम्यक शब्द लगा रहता है । सम्यक का अर्थ है सामान्य ; न अधिक न कम मध्यावस्था ।



Thursday, April 15, 2021

गीता अध्याय : 6 से ध्यान सावधानियाँ

 

➡️ पिछले अंक में गीता अध्याय : 6 आधारित नासिका के अग्र भाग पर ध्यान करने के सम्बन्ध में बताया गया । यह विधि चीत्त -वृत्ति निरोध से सम्बंधित है ।

➡️अब गीता अध्याय : 6 के ही आधार पर ध्यान प्रारम्भ के समय जिन सावधानियों को जानना चाहिए , उन्हें बताया जा रहा है ।

➡️गीता अध्याय : 6 मूलतः मन नियंत्रण से सम्बंधित है मन नियंत्रण होने के बाद साधना उर्ध्वगामी होती है ।मन नियंत्रण के बाद साधना में ऊपर की भूमियों में प्रवेश मिलने लगता है , अदि अन्य बातें सामान्य रहें तो ।

➡️गीता अध्याय : 6 से कुछ और ध्यान की बातों को आप देख सकेंगे , अगले अंक में ।। ॐ ।।

Wednesday, April 14, 2021

गीता अध्याय - 6 आधारित ध्यान विधि

 

#नासिका के अग्र भाग पर ध्यान साधना के सम्बन्ध में प्रभु अर्जुनको धर्मक्षेत्र युद्ध क्षेत्र कुरुक्षेत्र में बता रहे हैं।

◆यहाँ दो बातें बताई जा रही हैं ; एक आसन साधना के सम्बन्ध में और दूसरी नासिका के अग्र भाग को आलंबन बना कर उस पर मन को निर्विचार अवस्था में रखते हुए इंद्रियों की गति का साक्षी बने रहने की साधना ।

★ नासिका का अग्र भाग दो हैं ; पहला आगे का भाग जहाँ से वायु अंदर आती और बाहर जाती रहती है । दूसरा अग्र भाग है नासिक की जड़ जो आज्ञा चक्र के साथ जुड़ी है । श्री युक्तेश्वर गिरी , परमहंस योगानंद जी के गुरु नासिका का अग्र भाग पीछे नासिकाके जड़ को मानते हैं ।

Tuesday, April 13, 2021

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय : 6 के कुछ श्लोक

 

👌 बुद्ध कहते हैं , "अप दीपो भव " और प्रभु श्री कह रहे हैं , " अपना उद्धार आप स्वयं करो "

👌 प्रभु कह रहे हैं , " मनुष्य स्वयं स्वयंका मित्र और शत्रु दोनों है , कैसे ? देखिये ऊपर स्लाइड में ^

👌योग फलित होते ही इंद्रियों में वैराग्य की ऊर्जा बहने लगती है अतः पहले अपनें कर्म को कर्मयोग में बदलते देखो , फिर कर्मयोग में स्वयं को योगारूढ़ होते देखो फिर आगे क्या होता है , वह शब्दातीत है लेकिन ब्रह्म से आत्मा का एकत्व स्थापित हो जाता है और योगारूढ़ की यह अवस्था योगी को देश - काल से मुक्त बना देती है।

देश काल क्या है ? 

विज्ञान इसे Time and space कहता है ।

Monday, April 12, 2021

गीता अध्याय - 6 श्लोक - 1

 

गीता अध्याय : 6 श्लोक : 1 से श्लोक : 32 तक गीता अध्याय - 5 का ही अंश है । कैसे देखे यहाँ ⬇️

गीता श्लोक : 5.1 में अर्जुन पूछते हैं , " हे कृष्ण ! आप कभीं कर्म योग की प्रशंसा करते हैं और कभीं कर्म संन्यास की । आप मुझे केवल उसे बताएं जो मेरे लिए  सुनिश्चित श्रेय हो । 

प्रभु अर्जुन के इस संदेह को दूर करने के लिए प्रभु श्री के अगले 60 श्लोक ( 5.2 से 6.32 तक ) हैं । क्योंकि श्लोक : 6.33 में पुनः अर्जुन प्रश्न उठाते हैं ।

श्लोक : 6.1 में अग्नि त्यागी शब्द को समझना होगा । अग्निका अर्थ है कर्म काण्ड सम्बंधित वैदिक यज्ञ आदि (vedic rituals )। योगी और सन्यासी दोनों एक के दो नाम हैं । योगाभ्यास से कर्म बंधनों से संन्यास मिलता है । 

गीता श्लोक : 6.35 में अभ्यास - वैराग्य से चित्त की वृत्तियों को शांत करने के उपाय रूप में बताया गया है और पतंजलि योग सूत्र समाधि पाद सूत्र : 12 , 15 और 16 में पूर्ण वैज्ञानिक ढंग से व्यक्त किया गया है ।

अतः कर्म योग से कर्म बंधनों से संन्यास मिलता है और इसे ही वैराग्य भी कहते हैं ।। ॐ ।।

Sunday, April 11, 2021

गीता अध्याय - 6 सार तत्त्व - 1

 


★ गीता अध्याय : 6 का मूल तत्त्व है - मन । श्रीमद्भागवत पुराण में कहा गया है कि मन मोक्ष - बंधन का कारण है ; 

मन से हम मोक्ष प्राप्त करते हैं और मन से ही भोग - आसक्ति में उलझे रहते हैं ।

परम से एकत्व स्थापित करना , समाधि की अनुभूति में डूबना तथा कैवल्य के माध्यम से मोक्ष प्राप्त करने का एक मात्र उपाय है .....

◆ इन्द्रिय - बिषय को समझना ....

◆ 10 इंद्रियों पर पूर्ण मैत्री नियंत्रण स्थापित करना..

★और मन का नियंत्रित बने रहना //

#अध्याय : 6 सार तत्त्व के सम्बन्ध मरण कुछ बातें यहाँ दी गयी हैं और अगले अंको में कुछ और साधना श्रोतों को दिया जाएगा ।। ॐ ।।

Saturday, April 10, 2021

गीता अध्याय - 5 सार - 4

 

यह अंक अध्याय - 5 के सार का आखिरी भाग है।

⏩पिछके तीन अंको में मूलतः कर्म , कर्म - योग सम्बंधित बातों को देखा गया और अब ....

▶️ज्ञानसे ब्रह्म निर्वाण तक की यात्रा में  आज्ञाचक्र जागृत करने की ध्यान विधि की बताया जा रहा है । 7 चक्रों में छठवां चक्र आज्ञा चक्र है जिसकी सिद्धि से योगी सिद्ध योगी बन जाता है । सिद्धियों का प्रयोग यदि अपनी ख्याति बढ़ाने के लिए करने लगता है तब उसकी आगे सहस्त्रार की यात्रा खंडित हो जाती है और वह योगी ब्रह्म निर्वाण प्राप्ति न करके भोग में उतरने लगता है ।

🖕अब देखिये और समझिए ऊपर की स्लाइड को 🔼

।। ॐ ।।

Friday, April 9, 2021

गीता अध्याय - 5 भाग - 3

 

योगी और भोगी दोनों एक कर्म करते हैं लेकिन भिन्न - भिन्न ऊर्जाओं से । भोगी कर्मबन्धनों की गुलामी में कर्म करता है , लेकिन स्वयं को सम्राट समझता हुआ और योगी उसी कर्म को अपनें अंतःकरण ( मन , बुद्धि , अहँकार ) की निर्मलता को बनाये रखने के लिए करता है। भोगी स्वयं को करता समझता हुआ स्वयं के लिए कर्म करता है और योगी तीन गुणों को करता समझता हुआ  प्रभु के लिए कर्म करने वाले एक माध्यम के रूप में स्वयं को देखता रहता है ।

# प्रभु किसी के कर्म , कर्म फल और कर्तापन की रचना नहीं करते । तीन गुणों में हर पल हो रहा बदलाव और अहँकार की ऊर्जा से कर्म होता है , इसे गुण विभाग और कर्म विभाग वेदों नें कहा गया है  ( यहाँ देखिये गीता : 3.28 ) // ॐ //

Wednesday, April 7, 2021

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय : 5 सार भाग - 2


 ★ प्रभु यहाँ कह रहे हैं , राग - द्वेष मुक्त , कर्म - बंधन मुक्त होता है और गीता : 3.34 में कहते हैं , इन्द्रिय बिषय राग - द्वेष की ऊर्जा वाले होते हैं । यहाँ कुछ मूल बातों को देखना पड़ेगा जैसे पहला कर्म बंधन क्या हैं और दूसरा इन्द्रिय - बिषय क्यों राग - द्वेष की ऊर्जा पैदा करते हैं ? और तीसरा प्रभु गीता : 5.22 में यह भी कहते हैं कि इन्द्रिय - बिषय संयोगसे भोगकी उत्पत्ति होती है ।

कर्म बंधन क्या हैं ? देखिये यहाँ 👇

★अब अन्य दो को देखते हैैं 👇

इन्द्रिय - बिषय संयोग उनके लिए भोग है जो तीन गुणों के सम्मोहन में डूबे हुए हैं लेकिन योगी तो वह है जो स्वयं को करता न समझते हुए गुण विभाग और कर्म विभाग (गीता : 3.28 ) को ठीक -ठीक समझता है। जिसका चित्त भोग में आसक्त होता है , उनके लिए इन्द्रिय - बिषय राग - द्वेष ऊर्जा वाले होते हैं।

// ॐ //

Tuesday, April 6, 2021

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय : 5 भाग - 1

 श्रीमद्भगवद्गीत अध्याय : 3 श्लोक - 1 और अध्याय : 5 श्लोक - 1 को एक साथ देखने के बाद अध्याय - 5 के शेष श्लोको में प्यार से डूबना चाहिए , तो आइये ! चलते हैं , श्लोक : 3.1 और 5.1 की ओर.....

श्लोक : 3.1 > अर्जुन पूछते हैं , " हे जनार्दन ! यदि कर्म से उत्तम ज्ञान है फिर आप मुझे कर्म के लिए क्यों प्रेरित कर रहे हैं ? "

अब श्लोक : 5.1 > अर्जुन पूछ रहे हैं , " हे कृष्ण ! आप कर्मयोग और कर्म - संन्यास दोनों की प्रशंसा कर रहे हैं । इन दो में जो मेरे लिए सुनिश्चित श्रेय हो , उसे बताएँ ?" 

अब आगे > देखा , अपनें ! अर्जुन की बुद्धि कर्म , ज्ञान , कर्मयोग और कर्म संन्यास शब्दों में कैसे भटक रही है ?

इस उठ रहे प्रश्न का समाधान गीता अध्याय : 2 श्लोक - 53 में प्रभु दे चुके हैं । यहाँ प्रभु कह रहे हैं , " मेरे भांति - भांति के वचनों के सुनने से  विचलित तेरी बुद्धि जब निश्चल , अचल स्थिर हो जायेगी और तुम समाधि में स्थित होवोगे तब तुम योग को प्राप्त हो जायेगा । "

अर्थात समाधि एक ऐसी चित्त की स्थिति है जहाँ सत्य का निः शब्द बोध होता है । अब आगे ⬇️



Monday, April 5, 2021

गीता अध्याय - 4 भाग - 3

 प्रो. हॉकिंग अपनी किताब TIME में और अल्बर्ट आइंस्टीन सापेक्ष सिद्धांतों में कल्पना करते हैं कि मनुष्य अपने पिछली स्मृतियों में लौट सकता है ।

यहाँ निम्न स्लाइड में  इस बिषय पर , गीत, गौतम और पतंजलि क्या कहते है ? इसे दिखाया गया है ⬇️



Sunday, April 4, 2021

गीता अध्याय - 4 का सार भाग - 2

 गीता अध्याय - 4 सार भाग - 2 में देखिये ज्ञान , ज्ञानी , समभाव और संदेह सम्बंधित श्लोकों के सार को ।

यहाँ साधना की दृष्टि से गीता  से जुड़ने का एक सहज मार्ग भी दिखाया जा रहा है । आइये , देखते हैं इस स्लाइड को ⬇️


 

गीता अध्याय : 4 का सार भाग - 1

 गीता अध्याय : 4 का सार 03 स्लाइड्स के माध्यम से दिया जायेगा । आज आप के लिए पहली स्लाइड दी जा रही है ।

ध्यान रखें कि यह प्रयाश उन लोगों के लिए किया जा रहा है जिनको मूल गीता पढ़ने के लिए समय नहीं हैं । आप दी जा रही स्लाइड्स को अपनें मोबाईल में एक फाइल बनाकर रख सकते हैं और अपने ब्यस्त दिन चर्या में यात्रा करते समय इन स्लाइड्स को देख सकते हैं ।

देखिये इस स्लाइड को ⬇️



Thursday, April 1, 2021

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय - 3 सार

 श्रीमद्भगवद्गीत अध्याय - 3 का सार , यहाँ दिया जा रहा है , उनके लिए जिनके पास इतना समय नहीं कि वे मूल गीता को पढ़ सकें लेकिन ध्यान रखना ....

शायद ही कोई हिन्दू ऐसा मिले जो आखिरी श्वास भर रहा हो और उसे उसके परिवार जन गीता के कुछ श्लोकों को न सुनाते हों ।

अंत समय में प्रत्येक हिन्दू को गीता और गंगा जल का दर्शन अवश्य कराया जाता है । आइये ! देखते हैं पॉकेट गीता किनिस स्लाइड को👇



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