श्रीमद्भगवद्गीत अध्याय : 3 श्लोक - 1 और अध्याय : 5 श्लोक - 1 को एक साथ देखने के बाद अध्याय - 5 के शेष श्लोको में प्यार से डूबना चाहिए , तो आइये ! चलते हैं , श्लोक : 3.1 और 5.1 की ओर.....
श्लोक : 3.1 > अर्जुन पूछते हैं , " हे जनार्दन ! यदि कर्म से उत्तम ज्ञान है फिर आप मुझे कर्म के लिए क्यों प्रेरित कर रहे हैं ? "
अब श्लोक : 5.1 > अर्जुन पूछ रहे हैं , " हे कृष्ण ! आप कर्मयोग और कर्म - संन्यास दोनों की प्रशंसा कर रहे हैं । इन दो में जो मेरे लिए सुनिश्चित श्रेय हो , उसे बताएँ ?"
अब आगे > देखा , अपनें ! अर्जुन की बुद्धि कर्म , ज्ञान , कर्मयोग और कर्म संन्यास शब्दों में कैसे भटक रही है ?
इस उठ रहे प्रश्न का समाधान गीता अध्याय : 2 श्लोक - 53 में प्रभु दे चुके हैं । यहाँ प्रभु कह रहे हैं , " मेरे भांति - भांति के वचनों के सुनने से विचलित तेरी बुद्धि जब निश्चल , अचल स्थिर हो जायेगी और तुम समाधि में स्थित होवोगे तब तुम योग को प्राप्त हो जायेगा । "
अर्थात समाधि एक ऐसी चित्त की स्थिति है जहाँ सत्य का निः शब्द बोध होता है । अब आगे ⬇️