★ प्रभु यहाँ कह रहे हैं , राग - द्वेष मुक्त , कर्म - बंधन मुक्त होता है और गीता : 3.34 में कहते हैं , इन्द्रिय बिषय राग - द्वेष की ऊर्जा वाले होते हैं । यहाँ कुछ मूल बातों को देखना पड़ेगा जैसे पहला कर्म बंधन क्या हैं और दूसरा इन्द्रिय - बिषय क्यों राग - द्वेष की ऊर्जा पैदा करते हैं ? और तीसरा प्रभु गीता : 5.22 में यह भी कहते हैं कि इन्द्रिय - बिषय संयोगसे भोगकी उत्पत्ति होती है ।
कर्म बंधन क्या हैं ? देखिये यहाँ 👇
★अब अन्य दो को देखते हैैं 👇
इन्द्रिय - बिषय संयोग उनके लिए भोग है जो तीन गुणों के सम्मोहन में डूबे हुए हैं लेकिन योगी तो वह है जो स्वयं को करता न समझते हुए गुण विभाग और कर्म विभाग (गीता : 3.28 ) को ठीक -ठीक समझता है। जिसका चित्त भोग में आसक्त होता है , उनके लिए इन्द्रिय - बिषय राग - द्वेष ऊर्जा वाले होते हैं।
// ॐ //
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