गीता अध्याय : 6 श्लोक : 1 से श्लोक : 32 तक गीता अध्याय - 5 का ही अंश है । कैसे देखे यहाँ ⬇️
गीता श्लोक : 5.1 में अर्जुन पूछते हैं , " हे कृष्ण ! आप कभीं कर्म योग की प्रशंसा करते हैं और कभीं कर्म संन्यास की । आप मुझे केवल उसे बताएं जो मेरे लिए सुनिश्चित श्रेय हो ।
प्रभु अर्जुन के इस संदेह को दूर करने के लिए प्रभु श्री के अगले 60 श्लोक ( 5.2 से 6.32 तक ) हैं । क्योंकि श्लोक : 6.33 में पुनः अर्जुन प्रश्न उठाते हैं ।
श्लोक : 6.1 में अग्नि त्यागी शब्द को समझना होगा । अग्निका अर्थ है कर्म काण्ड सम्बंधित वैदिक यज्ञ आदि (vedic rituals )। योगी और सन्यासी दोनों एक के दो नाम हैं । योगाभ्यास से कर्म बंधनों से संन्यास मिलता है ।
गीता श्लोक : 6.35 में अभ्यास - वैराग्य से चित्त की वृत्तियों को शांत करने के उपाय रूप में बताया गया है और पतंजलि योग सूत्र समाधि पाद सूत्र : 12 , 15 और 16 में पूर्ण वैज्ञानिक ढंग से व्यक्त किया गया है ।
अतः कर्म योग से कर्म बंधनों से संन्यास मिलता है और इसे ही वैराग्य भी कहते हैं ।। ॐ ।।
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