पिछले अंक की स्लाइड में गीता : 6.23 में दी गयी योग की परिभाषा को देखा गया जिसमें प्रभु कहते हैं , वह जो दुःखों को निर्मूल करे , योग है । अब देखते हैं पतंजलियोग दुःख निर्मूल करने की दवा रूप में अष्टांगयोग को बताता है तथा बुद्ध अष्टांग मार्ग को एकमात्र दुःख से निवृत होने की दवा बताते हैं ।
बुद्ध के सभीं अष्टांग तत्त्वों के पहले सम्यक शब्द लगा रहता है । सम्यक का अर्थ है सामान्य ; न अधिक न कम मध्यावस्था ।
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