Friday, April 9, 2021

गीता अध्याय - 5 भाग - 3

 

योगी और भोगी दोनों एक कर्म करते हैं लेकिन भिन्न - भिन्न ऊर्जाओं से । भोगी कर्मबन्धनों की गुलामी में कर्म करता है , लेकिन स्वयं को सम्राट समझता हुआ और योगी उसी कर्म को अपनें अंतःकरण ( मन , बुद्धि , अहँकार ) की निर्मलता को बनाये रखने के लिए करता है। भोगी स्वयं को करता समझता हुआ स्वयं के लिए कर्म करता है और योगी तीन गुणों को करता समझता हुआ  प्रभु के लिए कर्म करने वाले एक माध्यम के रूप में स्वयं को देखता रहता है ।

# प्रभु किसी के कर्म , कर्म फल और कर्तापन की रचना नहीं करते । तीन गुणों में हर पल हो रहा बदलाव और अहँकार की ऊर्जा से कर्म होता है , इसे गुण विभाग और कर्म विभाग वेदों नें कहा गया है  ( यहाँ देखिये गीता : 3.28 ) // ॐ //

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