Sunday, November 1, 2009

अपरा भक्ति के माध्यम - 6

पीर- पैगम्बरों की मजारें किसी का इन्तजार करती हैं ।
सरमद का धड से जुदा हुआ सिर यह बोलता हुआ जामा मस्जिद की सीढियों से लुढ़क रहा था--------
ला इलाही इल अल्लाह ।
औरंगजेब को सब जानते हैं लेकिन उसके भाई दारा शीकोह को बहुत कम लोग जानते होंगे ।
दारा शीकोह सन1940 में कश्मीर की यात्रा की थी और वहाँ के पंडितों से उसको उपनिषदों का पता चाला था। दारा जब वापस आए तब काशी से पंडितों को बुलवाया और उपनिषदों का पर्सियन भाषा में अनुबाद करवाया । दारा का यह काम उपनिषदों को विश्व के चिंतकों के सामनें ला सका।
औलिया सरमद एक यहूदी ब्यापारी था जो यरूशलम से दिल्ली तक की पैदल यात्रा किया करता था।
एक बार की बात है , सरमद की समान बिक न पायी और सरमद चलते - चले काशी से होता हुआ बिहार के एक गाँव में जा पहुंचा । संयोग की बात है उस दिन वहाँ मेला चल रहा था और सरमद अपनीं दूकान वहाँ लगा दिया ।
सरमद दिल भर अपना काम करता रहा और जब रात आनें को हुयी तब दूकान बंद करके उसी जगह विश्राम
करनें लगा । सोचते - सोचते उसके मन में बिचार आया की इस मिट्टी की कब्र में ऎसी कौन सी बात है की
इतनी भीड़ यहाँ इकट्ठी हो रही है । सरमद सोचते - सोचते धीरे-धीरे उस पीर के पास पहुँच गया। सरमद
ज्योंही पीर पर अपना सीर झुकाया वहीं का हो कर रह गया , साड़ी रात वह उसी जगह पडा रहा । सुबह-सुबह गाँव के लोग जब उसे देखे तो उसे उठाया , सरमद उठते ही रो पडा और दोनों हांथों को ऊपर उठा कर बोला-----ला इलाही इल अल्लाह ---अर्थात जब इस मिटटी की कब्र में इतना नूर है तो अल्लाह तेरा नूर कैसा होगा ?
यह छोटी सी घटना सरमद को ब्यापारी से औलिया बना दिया ।
सरमद काशी में कुछ दिन रहनें के बाद पुनः दिल्ली वापिस अगया और जमा मस्जिद के इलाके में घूमता
रहता था । दिल्ली के मुल्लाओं को सरमद का औलिया स्वभाव रास न आया , अंततः १६५९ में उसका सिर
कलम कर दिया गया और सीढियों से लुढ़कता सिर यही बोलता रहा ---ला इलासी इल अल्लाह ।
आप भी पीरों की कब्रों पर जाते होंगे , ज़रा सोचना क्या पता कोई आप का इन्तजार कर रहा हो ?
=====ॐ=======

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