गीता श्लोक –1.1
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः /
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय //
धृतराष्ट्र कौरव परिवार के प्रधान पूछ रहे हैं अपनें सहयोगी संजय से , “ हे संजय ! धर्म भूमि कुरुक्षेत्र में एकत्रित युद्ध की इच्छावाले मेरे और पाण्डु के पुत्रोंनें क्या किया ? “
यह सूत्र पिछले अंक में दिया गया है और कुरुक्षेत्र के सम्बन्ध में कुछ बातें भी कही गयी हैं अब देखते हैं इस सूत्र के सम्बन्ध में कुछ और बातों को -------
इस सूत्र में कुरुक्षेत्र को धर्म क्षेत्र कहा गया है और धृतराष्ट्र जी संजय से क्यों पूछ रहे हैं , दोनों तरफ के लोग क्या कर रहे हैं ? , यहाँ हम इन दो बातों को समझनें की कोशिश कर रहे हैं , आइये अब हम चलते हैं कुरुक्षेत्र के उस भू भाग पर जहाँ दोनों पक्ष की सेनाएं आमनें सामने खडी हैं और कुछ औपचारिकाओं का इंतज़ार कर रही हैं /
अर्जुन का रथ दोनों सेनाओं के मध्य खडा है तथा अर्जुन अपनों को आपस में लड़ मरनें की सोच से मोहित हो रहे हैं और युद्ध से अपनें को दूर रखना चाह रहे हैं/प्रभु अर्जुन को युद्ध से ठीक पहले मोह मुक्त करानें के लिए सांख्य योग,वेदान्त एवं भक्ति आदि के माध्यम से अर्जुन के मन की स्थिति को बदलना चाह रहे हैं/
अंगुतारा निकाय , बौद्ध प्राचीनतम शास्त्र में 16 महाजनपदों में उस भू भाग को बाटा गया है जिसका सीधा सम्बन्ध महाभारत युद्ध से था / पूर्व में अंग महाजनपद के सम्राट थे महाराजा कर्ण जिनकी सेना हरियाणा के शहर करनाल में रुकी थी / अंग उस समय वह भाग था जिसको आज का बंगाल एवं बंगला देश कहते हैं / अंग पूर्व में स्थित है , पूर्व का सीधा सम्बन्ध सूर्य से है और कर्म को सूर्य का पुत्र कहा जात है / शल्य महाराजा कर्ण के सारथी थे जो कर्म के हार के कारण भी थे / कर्ण का अर्थ है कान जो सुननें का काम करता है और शल्य का अर्थ है संदेह ; कान एवं संदेह का गहरा मनोवैज्ञानिक सम्बन्ध है / महाराजा के सारथी शल्य का चुना जाना और अर्जुन के सारथी के रूप में श्री कृष्ण का चुना जाना महाभारत युद्ध का निर्णायक पल था / शल्य कर्ण के मन में हर पल शंका पैदा करता रहा और संदेह ब्यक्ति की ऊर्जा के पतन का कारण बनता है और दूसरी तरफ कृष्ण मन से हारे हुए अर्जुन को स्थिर प्रज्ञ बनाकर युद्ध करानें में लगे रहते हैं अर्थात सूखी लकडी में हरे पत्ते खिलाना चाह रहे हैं /
इस सम्बन्ध में कुछ और बातें आप देख सकते हैं अगले अंक में -------
=====ओम्=======