Sunday, March 25, 2012

गीता और हम अध्याय तीन भाग एक

क्य आप जानते हैं , दाराशिकोह को उपनिषदों का ज्ञान औलिया सरद से मिला था ?

दाराशिकोह उपनिषदों को फारसी में अनुबाद कराया और उपनिषद भारत से चल कर पश्चिम में पहुंचे / पहली बार जब पश्चिम के लोग उपनिषदों को पढ़ा तो हैरान हो उठे / उपनिषद की भाषा नेती - नेती कि भाषा है / दार्शनिक , वैज्ञानिक एवं ऋषि तीन प्रकार के लोग हैं जो ज्ञान की ओर यात्रा पर होते हैं और चाहते हैं कि सभीं लोग ज्ञान से सत्य को देखें / दार्शनिक और वैज्ञानिक बुद्धि केन्द्रित होते हैं और उनके पास तर्क – वितर्क की गहरी क्षमता होती है लेकिन ऋषि की यात्रा भिन्न होती है / ऋषि तर्क – वितर्क में नहीं उलझता उसके पास श्रद्धा की ऊर्जा होती है जहाँ संदेह के लिए कोई जगह नहीं

होती / ज्ञान के सम्बन्ध में प्रो . आइन्स्टाइन कहते हैं ---------

Knowledge exists in two forms ; lifeless and alive , lifeless knowledge is stored in books and alive is one,s consciousness .

ऋषि परिणाम देता है , दार्शनिक उस परिणाम को प्राप्त करनें के सहज उपायों का निर्माण करता है और वैज्ञानिक संदेह की नाव पर सवार हो कर सत् और असत् के मध्य भ्रमण करता रहता है / आप जानते होंगे , बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में आइन्स्टाइन जो भी कुछ कहा उनको सिद्ध करनें के लिए उनके पास बहुत अधिक सामग्री थी और आज लगभग सौ साल से वैज्ञानिक उनकी कही गयी बातों को खोज रहे हैं और यह खोज अभीं चलती रहेगी , ऐसा दिख रहा है / आइन्स्टाइन जैसा ब्यक्ति वैज्ञानिक नहीं ऋषि होता है जो जो कुछ भी देखता है वह सत्य ही होता है /

प्रो . आइन्स्टाइन कहते हैं , “ In nature a point exists where all physical theories break down . “ आप ज़रा कल्पना कीजिए कि ऎसी बात आइन्स्टाइन कब कही होगी ? आइन्स्टाइन के जीवन का मात्र केवल एक लक्ष्य था , वे उस समीकरण को खोज रहे थे जिस के आधार पर प्रकृति अपना काम कर रही है लेकिन वह unified formula उनको न मिल सका / वैज्ञानिक सोच कर करके जब सोच के परे पहुंचात है तब उसे सत्य की छाया दिखती है और वह खुश हो उठता है लेकिन जब वह जो देखता है उसे सिद्ध करनें की कोशीश करता है तब उसे परेशानी आती है और वह ठीक – ठीक उसे नहीं सिद्ध कर पाता जिसको वह देखा होता है / ऋषि कभी अतृप्त नहीं होता और वैज्ञानिक कभीं तृप्त नही हो सकता / वैज्ञानिक जो भी सोचता है उसका आधार संदेह होता है और ऋषि सोचता नहीं , देखता है और जो भी देखता है वह सत् होता है / सीधी सी बात है ---- गुणों की ऊर्जा जब भी मन – बुद्धि में बह रही होती है तब तक वह ब्यक्ति सत्य की ओर पीठ कर के खडा रहता है और निर्विकार मन – बुद्धि कभी असत्य को पकड़ नहीं पाता / गीता को पढ़िए , गीता को समझिए और अपनें मन – बुद्धि को निर्विकार करके सत्य में डूबिये //


=====ओम्======


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