Friday, March 2, 2012

गीत कहता है - 17

गुण विभाग एवं कर्म विभाग का बोध ही तत्त्व - वित् बनाता है ----- गीत - 3.28
क्या है गुण विभाग और क्या है कर्म विभाग ?
वेद , उपनिषद् एवं गीत कहते हैं --------
ब्रह्माण्ड में जड़ , चेतन , ऋषि , देवता एवं अन्य ऎसी कोई सूचना नहीं जिन पर गुणों का प्रभाव न रहता हो / प्रकृति के तीन गुण प्रभु द्वारा बनाये गए हैं लेकीन प्रभु गुणातीत है / मनुष्य प्रकृति से वायु , पानी एवं भोजन जो कुछ भी ग्रहण करता है उनसे उसे तीन गुणों की कुछ - कुछ मात्राएँ मिलती रहती है / मनुष्य के अन्दर तीन गुणों का एक हर पल बदलता हुआ समीकरण रहता है / गुण समीकरण एक ऊर्जा का श्रोत है जिसको कर्म ऊर्जा कहते हैं / मनुष्य के अन्दर जिस समय जो गुण प्रभावी रहता है वह वैसा कर्म करता है /
सात्त्विक गुण प्रभु की ओर ले जाता है , राजस गुण भोग में आसक्ति पैदा करता है और भोग को भगवान जैसा दिखाता है और तामस गुण सात्त्विक एवं राजस दोनों के मध्य का होता है जिसका देह में केंद्र है नाभि / तामस गुण से भय , आलस्य एवं निद्रा के प्रभाव में मनुष्य रहता है //
===== ॐ ======

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