Tuesday, March 6, 2012

गुण एवं हम

गीता श्लोक –14.19

नान्यं गुणेभ्यः कर्तारं यदा द्रष्टानुपश्यति/

गुणेभ्यश्च परं वेत्ति मद्भावं सः अधिगच्छति//

शब्दार्थ -------

जिस समय द्रष्टा तीन गुणोंके अतिरिक्त किसी अन्य को कर्ता नहीं देखता और तीन गुणों से परे मुझे तत्त्व से समझता है उस समय वह मेरे स्वरुप को प्राप्त होता है//

भावार्थ ----

द्रष्टा वह है जो …...

गुणों के गुरुत्वाकर्षण शक्ति से परे रहता है

गों के अलावा और किसी को कर्ता नहीं देखता

और ऐसा ----

ब्यक्ति प्रभुमय रहता है //

Witness is he …. ..

who is beyond the gravity pull of three natural modes

whose perception is that non other than three modes is the doer

and ….

who always resides in the Supreme One

एक बात और-----

सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में गुणों के प्रभाव से परे प्रभु को छोड़ कर और कोई नहीं है,गीता- 18.40

not even a single information is beyond the influence of three modes except God Itself


=====ओम्======



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