Friday, March 23, 2012

गीता रहस्य एवं हम - ज्ञानयोग

पिछले अंक में आप देख चुके हैं कि कर्म से कर्म योग में उतरा योगी ज्ञान – योग का फल चखता

है , अब देखते हैं ज्ञान – योग में बसा योगी कैसा होता होगा ?

  • वह आत्मा से आत्मा में तृप्त रहता है वह सभी भूतों में आत्मा और सभी भूतों को आत्मा में कल्पित देखत है/

  • उससे जो भी होता है उसके पीछे कोई करण नहीं होता

  • उसे रह – रह कर अस्तित्व की झलक मिलती रहती है

  • वह अपनी द्वारा कही गयी बात को सिद्ध नहीं करता

  • वह अपनें स्थूल देह का द्रष्टा होता है

  • उसे देह के परे होनें की अनुभूति भी होती है

  • वह कभीं समाधि में होता है तो कभीं भोग संसार में

  • वह कटी पतंग जैसा होता है ;

  • ऐसा योगी स्वयं में तीर्थ होता है

  • ऐसा योगी जहाँ होता है वह स्थान ऊर्जा क्षेत्र बन जाता है

  • ऐसा योगी जहाँ होता है उसके चारों तरफ लगभग पांच मील के क्षेत्र में सात्त्विक उर्जा बहती है

और अब आगे------

याद रखें चाह चाह है चाहे राम की हो या काम की

जब अहँकार श्रद्धा में बदल जाता है

जब वासना प्यार में बदल जाती है

तब वह जो भी देखता है वह परमात्मा ही होता है

और वह योगी ज्ञानी होता है//


==== ओम्======




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