Monday, March 12, 2012

गीता और हम भाग तीन

ज़रा रुकना-----

क्या आप यह समझ रहे हैं कि अब आप गीता की ओर नहीं चल रहे , इतनें दिनों के बाद गीता आप को अपनी ओर खीच रहा है ? यदि यह बात गलत है और यदि आप स्वयं गीता की ओर कदम उठा रहे हैं तो निम्न में से कोई एक या एक से अधिक कारण हो सकते हैं /

  • पहला कारण अहंकार

  • दूसरा कारण भय

  • तीसरा कारण लोभ

  • चौथा कारण कामना पूर्ति की चाह

  • पाँचवाँ कारण मोह

जब आप के कदम उठते हैं तब आप के कदम तो बाद में उठते हैं आप के मन के कदम पहले चल पड़ते हैं और यह तन – मन का सम्बन्ध मनुष्य को वहाँ नहीं पहुंचा पाता जहाँ की वह तलाश जन्मों से कर रहा है / मनुष्य आवागमन के चक्र से मुक्त होनें का द्वार खोजते - खोजते एक दिन थक जाता है , उसका तन तो जबाब देता है पर मन हार नहीं मानता / मनुष्य का देह जब गिर पड़ता है तब मन देह को छोड़कर अहंकार को अपने साथ ले कर आत्मा के साथ हो लेता है / आत्मा , मन एवं इंद्रियों के साथ तबतक गमन करता रहता है जबतक मन को उसकी चाह के अनुकूल नया देह नहीं मिल जाता / इन्द्रियाँ मन के फैलाव के रूप में हैं ; गीता में प्रभु कहते भी हैं - इन्द्रियाणाम् मनः अस्मि

[गीता श्लोक –10.22 ] /

एक बात अपनी स्मृति में उस समय जरुर रख लें जब आप गीता के संग हों-----

जबतक आप का सम्बन्ध गीता के संग प्रकृति रचित तीन गुणों के तत्त्वों के प्रभाव में होगा तबतक आप गीता किताब के संग तो हो सकते हैं लेकिन उस गीता के संग नहीं हो सकते जिस गीता में सांख्य – योगी पूर्णावतार प्रभु श्री कृष्ण बसते हैं /


===== ओम्========



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