प्रमाण के आधार पर बिषय - वस्तु के सम्बन्ध में जाना जाता है। ज्ञान प्राप्ति के श्रोत होते हैं , प्रमाण ।
Thursday, September 30, 2021
Wednesday, September 22, 2021
पञ्च क्लेष और चित्त के विभिन्न अंग
सभीं दर्शन क्लेष और चित्त केंद्रित हैं अतः पतंजलि योग सूत्र साधन पाद सूत्र - 3 के संदर्भ में चित्त के विभिन्न अंगों को भी समझना चाहिए जिसके प्रारंभ में निम्न स्लाइड को यहाँ दिया जा रहा है ।
आइये देखते और समझते हैं स्लाइड में दिए गए तत्त्वों को 👇
Monday, September 20, 2021
पञ्च क्लेष क्या हैं ?
साधन पाद - 03 > पञ्च क्लेष क्या हैं ?
क्लेष का स्थूल भाव है दुःख के बीज अर्थात वे कारण जिनका कार्य विभिन्न प्रकार जे दुःख हैं ।
सांख्य कारिका : 01 में 03 प्रकार के दुःख बताये गए हैं ;
1- आध्यात्मिक , 2 - आधिभौतिक और 3 - आधिदैविक ।
आध्यात्मिक दुःख का कारण हम स्वयं होते हैं , आधिभौतिक में कारण दूसरे जीव कारण होते हैं और आधिदैविक में कारण प्रकृति या देव होते हैं जैसे भूकंप का आना , अति वृष्टि आदि ।
अब स्लाइड को देखते हैं ⬇️
Saturday, September 18, 2021
पतंजलि साधन पाद सूत्र - 2
ईश्वर प्रणिधान सिद्धि से क्लेष तनु अवस्था में जा जाते हैं । अविद्य , अस्मिता , राग , द्वेष और अभिनिवेष - वे 05 क्लेष हैं । तनु अवस्था क्या है ? इसे भी स्लाइड में दिखाया गया हैं। चित्त की 05 अवस्थाएँ या भूमियाँ हैं जिनमें प्रथम 03 न्हिग से जोड़ कर रखती हैं और आखिरी 02 योग से जोड़ती हैं ।
देखिये स्लाइड्स को ⬇️
ईश्वरप्रणिधान क्या है ?
पतंजलि साधन पाद सूत्र - 01 क्रियायोग का तीसरा अंग ईश्वरप्रणिधान है ।
ईश्वरप्रणिधान भक्तियोग का द्वार है । यह प्रभु के प्रसाद रूप में उनको मिलता है जिनकी साधना पूरी तरह पक गयी होती है । सभीं साधनाओं का आखिरी छोर जिसे किसी सीमा तक व्यक्त किया जा सकता है , वह है प्रभु के प्रति पूर्ण समर्पण ।
श्रीमद्भगवद्गीत में 700 श्लोक हैं जिनमें लगभग 180 श्लोक ऐसे हैं जिनमें प्रभु अर्जुन का ध्यान किसी न किसी रूप में ईश्वर पर केंद्रित बनाये रखना चाहते हैं । गीता प्रश्न और उत्तर के रूप में है जैसे अन्य पुराण हैं । अर्जुन प्रश्न उठाते हैं और प्रभु उत्तर देते हैं । गीता में अर्जुन के 16 प्रश्न हैं और हर प्रश्न के उत्तर में प्रभु अर्जुन का ध्यान ईश्वर या ईश्वर के अन्य तत्त्व जैसे ब्रह्म , आत्मा , जीवात्मा , पुरुष और क्षेत्रज्ञ आदि पर केंद्रित रखने की कोशिश करते हैं ।
यह साधन पाद सूत्र - 1 से सम्बंधित आखिरी अंक है । अगले अंक में सूत्र - 2 की चर्चा होगी ।
आइये ईश्वर प्रणिधान सम्बंधित निम्न 02 स्लाइड्स को देखते हैं ⬇️
Wednesday, September 15, 2021
पतंजलि साधन पाद सूत्र - 1 क्रियायोग क्रमशः
पतंजलि साधन पाद सूत्र - 1 क्रियायोग के 03 अंगों में से अंग - 2 और अंग - 3 को यहाँ देखा जा रहा है ।
स्वाध्याय और ईश्वरप्रणिधान
क्रियायोग के इन दो अंगों का आपसी गहरा संबंध है । साधना में स्वाध्याय से पूर्व एक और आयाम मिलता है जिसे प्रत्याहार कहते हैं और जो अष्टांगयोग का पांचवां अंग है । जबतक प्रत्याहार की सिद्धि नहीं मिलती , स्वाध्याय में प्रवेश पाना संभव नहीं । जबतक यम , नियम , आसन और प्राणायाम की सिद्धि नहीं मिलती तबतक प्रत्याहार में पहुंचना संभव नहीं - यह है साधना की सीधी रेखा का नियम ।
लेकिन साधन पाद के पहले सूत्र में क्रियायोग के अंग के रूप में स्वाध्याय को हम यहाँ देख रहे हैं ।
हम कौन हैं ? सांख्य सुत्रों के आधार पर यह प्रश्न बिषयाकार चित्त में स्थित पुरुष स्वयं से पूछता है । पतंजलि योग सूत्र में पुरुष तो वही है जो सांख्य दर्शन का पुरुष है लेकिन पुरुष विशेष के रूप में ईश्वर को देखते हैं , महर्षि पतंजलि । यहाँ ईश्वर प्रेणना से बिषयाकार पुरुष स्वयं से पूछता रहता है कि मैं कौन हूँ । पुरुष की यही सोच स्वाध्याय है।
स्व + अध्याय अर्थात स्वयं के मूल अस्तित्व की तलाश पर चित्त को केंद्रित बनाये रखना । ईश्वर प्रणिधान का सम्बन्ध भक्ति योग से है। यहाँ कुसह और नहीं करना है केव्वल चित्त को बिषयाकार से ईश्वराकार बनाना है जो एक कठिन काम है । जहाँ सांख्य , योग , तंत्र और अन्य साधनाएं जा कर रुक सी जाती हैं वहां सामने एक तख्ती लटकती दिखती है , जिस पर लिखा होता है - आपका भक्ति में स्वागत है ।
अब देखिये निम्न स्लाइड्स को ⬇️
Monday, September 13, 2021
पतंजलि साधन पाद सूत्र - 1 क्रमशः
पतंजलि योगसूत्र के अंतर्गत साधन पाद के सूत्र - 01 में क्रियायोग के तीन तत्त्वों में से आज हम तप को समझ रहे हैं ।
इंद्रियों में सात्त्विक गुण की ऊर्जा हर पल भरी रहे और राजस एवं तामस गुणों की इन पर छाया भी न पड़नी पाए , जब ऐसी स्थिति आती है तब तप सिद्धि मिलती है ।
बिषय से बैराग्य की स्थिति प्राप्त करने के लिए जो कुछ भी किया जाता है , उसे तप कहते हैं । इस स्थिति को प्राप्त करने के उपाय हठ योग शरीर माध्यम से और पतंजलि एवं सांख्य चित्त माध्यम से प्राप्त करने की विधियों को बताते हैं ।
अब देखते हैं स्लाइड को ⬇️
Sunday, September 12, 2021
पतंजलि साधन पाद सूत्र - 01 क्रियायोग
क्रियायोग क्या है ?
जहाँ क्रियायोग का नाम लिया जाता है वहां बंगाली टोला , वाराणसी के श्री श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय की फोटी दिखने लगती है ।
महाशय जी के सिद्ध क्रियायोगी शिष्यों में श्री युक्तेश्वर गिरी जी जो योगानंद जी के गुरु थे , केशबानंद जी , श्री रामगोपाल मजूमदार जी , दो शरीरी योगी प्रणाबानंद जी महाराज , योगी भूपेन्द्रनाथ सान्याल तथा केबलानंद जी का नाम स्मृति पटल पर उभड़ने लगता है ।
पतंजलि का क्रियायोग क्रियायोगी श्री श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय जी के क्रियायोग से भिन्न है ।
पतंजलि के क्रिया योग से चित्त की राजस - तामस गुणों वाली वृत्तियॉं शांत होती हैं
Saturday, September 11, 2021
पतंजलि योग दर्शन साधन पाद - 1
पतंजलि समाधि पाद की यात्रा जहाँ समाप्त होती है , वहाँ से साधन पाद की यात्रा प्रारंभ होती है ।
योग क्या है ? योग अनुशासनं है जो चीत्तकी वृत्तियों का निरोध करता है और दुःख - भय से मुक्त रखता है । पतंजलि और सांख्य दर्शनों का यही सार है ।
समाधि पाद के 51 सूत्रों में योग क्या है ? से यात्रा प्रारंभ हो कर समाधि में लीन हो गयी थी । समाधि टूटते ही योगी पुनः समाधि में लौटना चाहता है पर ऐसा कैसे संभव हो सकता है , इस प्रश्न का सम्यक उत्तर पतंजलि साधन पाद में देते हैं ।
साधन पाद का प्रारंभ क्रियायोग से होता है । क्रियायोग के 03 अंग अष्टांगयोग के दूसरे अंग नियम के 05 तत्त्वों में से आखिरी 03 तत्त्व हैं। पतंजलि कहते हैं , क्रियायोग सिद्धि से चित्त की वृत्तियॉं तनु अवस्था में आ जाती है । चित्त कि 05 अवस्थाएँ हैं जिनमें से चौथी अवस्था या भूमि तनु की है । तनु के बाद समाधि पांचवीं चित्त की अवस्था होती है । तनु अवस्था में चित की राजस - तामस गुणों वाली वृत्तियॉं तो शांत रहती हैं लेकिन सात्त्विक गुण आधारित वृत्ति सक्रिय रहती है । इस अवस्था में जो समाधि घटित होती है उसे सबीज या सम्प्रज्ञात समाधि कहते हैं ।
अब साधन पाद में प्रवेश करते हैं और देखते हैं निम्न स्लाइड को⬇️
Thursday, September 9, 2021
पतंजलि समाधि पाद का समापन
आज पतंजलि योग दर्शन के 04 पादों में से पहला पाद समाधि पाद पूरा हो रहा हुआ ।
पाद के अंत में असम्प्रज्ञात समाधि और धर्ममेघ समाधि से परिचय हुआ ।
आगे अब हमारी यात्र साधन पाद की होने वाली है जिसमें 55 सूत्र हैं।
समाधि की अनुभूति की जिज्ञासा हर ऐसे लोगों में होती है जिनमें सात्त्विक गुण की ऊर्जा बह रही होती है लेकिन इस अनुभूति को कैसे प्राप्त करें ? इस प्रश्न का उत्तर साधन पाद में मिलेगा ।
योगानंद बहुत से सिद्ध योगियों में अपने प्रारंभिक जीवन को गुजारा और सबसे यही कहते थे कि आप हमें समाधि क्यों नहीं देते ?
योगानंद के इस प्रश्न का उत्तर महाशय जी के शिष्य सिद्ध योगी श्री रामगोपाल मजूमदार जी निम्न प्रकार से देते हैं ।
# जिस समय योगानंद जी श्री रामगोपाल मजूमदार से मिलते हैं उस समय वे 11 वीं के क्षात्र थे ।
# श्री रामगोपाल जी कहते हैं , जैसे अगर 220 बोल्ट बल्ब के अंदर यदि 440 बोल्ट की बिजली प्रवाहित कर दी जाय तो वह बल्ब भष्म बन जाएगा वैसे जहाँ और जैसी स्थिति में तुम्हारा शरीर और तुम हो , यदि समाधि दे दी जाय तो तुम्हारी भी वही हालत होगी ।
🕉️ मेरे मित्र ! समाधि में तुम्हें तुम्हारे गुरु श्री युक्तेश्वर जी भी उतार सकते हैं लेकिन अभीं तुम तैयार नहीं हुए हो । तुम अपने गुरु से भागो नहीं , उनकी ऊर्जा को पीते रहो और जब उन्हें ऐसा लगने लगेगा कि अब तुम तैयार हो , तुम्हें समाधि में उतार देंगे।
पतंजलि अपने साधन पाद में अष्टांग योग माध्यम से समाधि में उतारते हैं , कैसे ? अगले कुछ अंको में आप देख सकेंगे ।
अब देहिये स्लाइड को ⬇️
Wednesday, September 8, 2021
पतंजलि योग सूत्र में सम्प्रज्ञात समाधि
मनुष्य सबकुछ होते हुए भी इतना अतृप्त क्यों है ? आखिर हम चाहते क्या हैं ? इस तरह के मौलिक प्रश्नों के सम्बन्ध में हर एक मनुष्य को एकांत में बैठ कर सोचना चाहिए ।
सांख्य और पतंजलि के अनुसार हम प्रकृति और पुरुष के योग से हैं। पुरुष चेतन और प्रकृति जड़ है । जब पुरुष प्रकृति से मिलता है , प्रकृति विकृत हो उठती है और 23 तत्त्वों के पुरुष बध जाता है । प्रकृति अपनें 23 तत्त्वों के अनुभव के बाद पुरुष को चाहती है कि वह अपनें मूल स्वरूप में आ जाय और वह जब यह समझ लेती है कि पुरुष उसे देख लिया है , वह अपनें मूल स्वरूप अर्थात तीन गुणों की साम्यावस्था में आ जाती है ।
प्रकृति पुरुष को कैवल्य में पहुँचाना चाहती है और पुरुष प्रकृति को देखना चाहता है । जब पुरुष प्रकृति के 23 तत्त्वों से मुक्त हो जाता है तब उस स्थिति को परा वैराग्य की स्थिति कहते हैं जहाँ से कैवल्य की यात्रा समाधि माध्यम से शुरू होती है ।
कैवल्य की यात्रा का माध्यम स्थिर वैराग्य और स्थिर वैराग्य में बार - बार समाधि घटित होना होता है ।
समाधि में पहले हम सबीज समाधि या साकार समाधि या सम्प्रज्ञात समाधि को देख रहे हैं ।
आइये देखते हैं निम्न दो स्लाइड्स को ⬇️
Monday, September 6, 2021
पतंजलि योग सूत्र में समाधि क्या है ?
महर्षि पतंजलि मूलतः 03 प्रकार की समाधियों का वर्णन करते हैं । अगर ध्यान से समझा जाए तो ये समाधियों के प्रकार नहीं , समाधि के चरण हैं । पहला चरण सम्प्रज्ञात समाधि नाम से जाना जाता है जिसमें चित्त की वृत्तियां शांत रहती है और चित्त शून्य अवस्था में होता है। इस समाधि में राजस - तामस गुणों की वृत्तियां शांत रहती हैं लेकिन सात्त्विक गुण की वृत्तियां सक्रिय रहती हैं ।
दूसरा चरण है असम्प्रज्ञात समाधि का जिसमें तीनों गुणों की वृत्तियां शांत रहती हैं ।
तीसरा समाधि का चरण है - धर्ममेघ समाधि । इस चरण में तीन गुणों की वृत्तियां शांत रहती हैं और संस्कार भी निर्मूल हो गया होता है अर्थात चित्त पारदर्शी निर्मल और पूर्ण शांत रहता है । यहाँ प्रकृति माध्यम से देह में स्थित पुरुष को अपनें मूल स्वरूप का पूरा बोध हो गया होता है और प्रकृति यह समझ कर कि पुरुष उसे देख चुका है , वह साम्यावस्था में लौट आती है ।
अदः देखिये स्लाइड्स को ⬇️
Sunday, September 5, 2021
अष्टांग योग समाधि के कुछ तत्त्व
आगे हमारी यात्रा पतंजलि योग सूत्र दर्शन के साधन पाद की प्रारम्भ होने वाली है । अभीं तक हम समाधि पाद की यात्रा में चित्त वृत्ति निरोध से समाधि तक के हर पड़ाओं से परिचित होते रहे हैं । अब हम यहाँ अष्टांग योग की समाधि से सम्बंधित कुछ तत्त्वों को समझते हैं क्योंकि इन तत्त्वों को समाधि पाद में हम नहीं देख पाए थे जबकि समाधि पाद की समाधि अष्टांग योग - समाधि होती है ।
आइये ! देखते हैं अष्टांग योग के कुछ अंगों को जिनका सीधा संबंध समाधि पाद की समाधि से है ⬇️
Saturday, September 4, 2021
योगदर्शन में चित्त योग साधना की मूल है
योगदर्शन और सांख्य दर्शन में चित्त एक ऐसा तत्त्व है जो स्वयं तो जड़ है लेकिन पुरुष और प्रकृति की संयोग भूमि है । चित्त के माध्यम से पुरुष प्रकृति के 23 तत्त्वों को समझ कर स्वयं के मूल स्वरुप को समझ जाता है और जब ऐसी घटना घटती है जब वह योगी महाविदेहा स्थिति में होता है अर्थात Out of body experiencing में होता हुआ समाधि में डूबा होता है ।
यहाँ वह समझता और देखता है कि वह कौन है और पहले वह स्वयं को क्या समझ बैठा था । अष्टावक्र गीता और उपनिषदों में नेति - नेति की पराकाष्ठा ही महाविदेहा की स्थिति होतो है ।
अब हम पतंजलि कैवल्य पाद में कुछ सुत्रों के आधार पर चित्त को समझते हैं , निम्न स्लाइड्स की मदद से ⬇️
Friday, September 3, 2021
Thursday, September 2, 2021
पतंजलि ,सांख्य , गीता और भागवत में चित्त क्या है ? भाग - 1
पतंजलि योगसूत्र समाधि पाद के पूरे 51 सुत्रों से हम मैत्री स्थापित कर राग से वैराग्य , वैराग्य में समाधि और समाधि में बस कर आगे की यात्रा करने की अब तैयार कर रहे हैं ।
योग - यात्रा का माध्यम चित्त है । चित्त से पुरुष भोक्ता है और भोग की गहरी अनुभूति से वह तृप्त होंकर अपनें मूल स्वभाव में लौटना चाहता है ।
प्रकृति यह समझ कर तृप्त हो जाती है और अपनी साम्यावस्था में आ जाती है कि पुरुष उसे देख लिया है । पुरुष प्रकृति के 23 तत्त्वों को समझ कर अपने मूल स्वरुप में लौट आता है लेकिन अभीं भी पुरुष मोक्ष प्राप्ति नहीं कर पाता । मोक्ष के लिए उसे और आगे की यात्रा करनी पड़ती है जब वह संस्कारों के बंधन से मुक्त होता है जिसे धर्ममेघ समाधि कहते हैं । धर्ममेघ समाधि के सम्बन्ध में हम आगे कुछ यात्रा पूरी करने के बाद समझ सकेंगे ।
💐अभीं हम चित्त के स्वाभाव , वृत्तियॉं , परिणाम और धर्म जैसी बातों को देखने का प्रयाश कर रहे हैं ।
अब स्लाइड को देखते हैं ⬇️