पतंजलि साधन पाद सूत्र - 01 क्रियायोग का तीसरा अंग ईश्वरप्रणिधान है ।
ईश्वरप्रणिधान भक्तियोग का द्वार है । यह प्रभु के प्रसाद रूप में उनको मिलता है जिनकी साधना पूरी तरह पक गयी होती है । सभीं साधनाओं का आखिरी छोर जिसे किसी सीमा तक व्यक्त किया जा सकता है , वह है प्रभु के प्रति पूर्ण समर्पण ।
श्रीमद्भगवद्गीत में 700 श्लोक हैं जिनमें लगभग 180 श्लोक ऐसे हैं जिनमें प्रभु अर्जुन का ध्यान किसी न किसी रूप में ईश्वर पर केंद्रित बनाये रखना चाहते हैं । गीता प्रश्न और उत्तर के रूप में है जैसे अन्य पुराण हैं । अर्जुन प्रश्न उठाते हैं और प्रभु उत्तर देते हैं । गीता में अर्जुन के 16 प्रश्न हैं और हर प्रश्न के उत्तर में प्रभु अर्जुन का ध्यान ईश्वर या ईश्वर के अन्य तत्त्व जैसे ब्रह्म , आत्मा , जीवात्मा , पुरुष और क्षेत्रज्ञ आदि पर केंद्रित रखने की कोशिश करते हैं ।
यह साधन पाद सूत्र - 1 से सम्बंधित आखिरी अंक है । अगले अंक में सूत्र - 2 की चर्चा होगी ।
आइये ईश्वर प्रणिधान सम्बंधित निम्न 02 स्लाइड्स को देखते हैं ⬇️
No comments:
Post a Comment