मनुष्य सबकुछ होते हुए भी इतना अतृप्त क्यों है ? आखिर हम चाहते क्या हैं ? इस तरह के मौलिक प्रश्नों के सम्बन्ध में हर एक मनुष्य को एकांत में बैठ कर सोचना चाहिए ।
सांख्य और पतंजलि के अनुसार हम प्रकृति और पुरुष के योग से हैं। पुरुष चेतन और प्रकृति जड़ है । जब पुरुष प्रकृति से मिलता है , प्रकृति विकृत हो उठती है और 23 तत्त्वों के पुरुष बध जाता है । प्रकृति अपनें 23 तत्त्वों के अनुभव के बाद पुरुष को चाहती है कि वह अपनें मूल स्वरूप में आ जाय और वह जब यह समझ लेती है कि पुरुष उसे देख लिया है , वह अपनें मूल स्वरूप अर्थात तीन गुणों की साम्यावस्था में आ जाती है ।
प्रकृति पुरुष को कैवल्य में पहुँचाना चाहती है और पुरुष प्रकृति को देखना चाहता है । जब पुरुष प्रकृति के 23 तत्त्वों से मुक्त हो जाता है तब उस स्थिति को परा वैराग्य की स्थिति कहते हैं जहाँ से कैवल्य की यात्रा समाधि माध्यम से शुरू होती है ।
कैवल्य की यात्रा का माध्यम स्थिर वैराग्य और स्थिर वैराग्य में बार - बार समाधि घटित होना होता है ।
समाधि में पहले हम सबीज समाधि या साकार समाधि या सम्प्रज्ञात समाधि को देख रहे हैं ।
आइये देखते हैं निम्न दो स्लाइड्स को ⬇️
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