Monday, February 27, 2012

गीता सन्देश भाग दो







  • कामना रहित कर्म ही कर्म संन्यास है





  • कामना अर्थात कर्म बंधन का कर्म में न होना उस कर्म को योग बनाता है





  • कामना अर्थात बंद मुट्ठी में कुछ और के आनें की सोच;हम मुट्ठी को खोलना नही चाहते हौर यह भी चाहते हैं कि इसमें वह आ जाए जो हम देख रहे हैं,यह कैसे संभव है और इस कारण से कामन को बुद्ध दुस्पुर कहते है





  • अहंकार रहित बुद्धि का गुलाम नहीं





  • सात्त्विक गुण धारी सर्वत्र अब्यय रूप में प्रभु को देखता है





  • ब्रह्माण्ड का एक बिंदु भी ऐसा नही जो गुणों के प्रभाव से परे का हो





  • दोष रहित कर्म का होना असंभव है





  • भक्त प्रभु की खुशबूं लेता है





  • भगवान भक्त के ह्रदय में बसता है यह बात भक्त समझता है





  • गुरजीएफ कहा करते थे - -----



    आत्मा सब में नहीं होती , आत्मा को पैदा करना होता है






=====ओम्======


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