कामना रहित कर्म ही कर्म संन्यास है
कामना अर्थात कर्म बंधन का कर्म में न होना उस कर्म को योग बनाता है
कामना अर्थात बंद मुट्ठी में कुछ और के आनें की सोच;हम मुट्ठी को खोलना नही चाहते हौर यह भी चाहते हैं कि इसमें वह आ जाए जो हम देख रहे हैं,यह कैसे संभव है और इस कारण से कामन को बुद्ध दुस्पुर कहते है
अहंकार रहित बुद्धि का गुलाम नहीं
सात्त्विक गुण धारी सर्वत्र अब्यय रूप में प्रभु को देखता है
ब्रह्माण्ड का एक बिंदु भी ऐसा नही जो गुणों के प्रभाव से परे का हो
दोष रहित कर्म का होना असंभव है
भक्त प्रभु की खुशबूं लेता है
भगवान भक्त के ह्रदय में बसता है यह बात भक्त समझता है
गुरजीएफ कहा करते थे - -----
आत्मा सब में नहीं होती , आत्मा को पैदा करना होता है
=====ओम्======
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