कर्म में कर्म बंधनों की पहचान भोग कर्म को योग में बदलती है
भोग – योग एक साथ क बुद्धि में नहीं समाते
योग में बुद्धि निर्विकार होती है जो प्रभु की झलक पाती है
निर्विकार मन – बुद्धि में ब्रह्म स्थित होता है
निर्विकार ह्रदय परा भक्ति में पहुंचाता है
परा भक्ति प्रभु का द्वार है
अपरा भक्ति साधन है जो परा का द्वार खोल सकती है
परा की अनुभूति अब्यक्तातीत होती है
परा भक्त एक कटी पतंग सा होता है जो प्रभु पर टंगा रहता है
परा भक्त गुणातीत होता है
=====ओम्========
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