Sunday, February 19, 2012

भोग योग समीकरण

  • कर्म में कर्म बंधनों की पहचान भोग कर्म को योग में बदलती है

  • भोग – योग एक साथ क बुद्धि में नहीं समाते

  • योग में बुद्धि निर्विकार होती है जो प्रभु की झलक पाती है

  • निर्विकार मन – बुद्धि में ब्रह्म स्थित होता है

  • निर्विकार ह्रदय परा भक्ति में पहुंचाता है

  • परा भक्ति प्रभु का द्वार है

  • अपरा भक्ति साधन है जो परा का द्वार खोल सकती है

  • परा की अनुभूति अब्यक्तातीत होती है

  • परा भक्त एक कटी पतंग सा होता है जो प्रभु पर टंगा रहता है

  • परा भक्त गुणातीत होता है


=====ओम्========


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