संन्यास प्रभु का द्वार है
कर्म – योग संन्यास का एक उत्तम माध्यम है
कर्म में कर्म – बंधनों का अप्रभावित होना ही कर्म संन्यास है
कर्म होनें में जब भाव प्रधान न हों तब वह कर्म सन्यासी का होता है
आसक्ति रहित कर्म ही कर्म – संन्यास होता है
आसक्ति रहित कर्म से नैष्कर्म्य की सिद्धि मिलती है
नैष्कर्म्य की सिद्धि ज्ञान योग में पहुंचाती है
आसक्ति रहित कर्म शांत मन से होता है
शांत मन निश्चयात्मिका बुद्धि के साथ होता है
मन को मित्र बनाता हैध्यान
=====ओम्=====
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