Friday, February 17, 2012

गीता राह

वैराज्ञ प्रभु का निवास है और भोग स्वर्ग नर्क दोनों का द्वार हो सकता है

प्रकृति - पुरुष से सभीं जड – चेतन हैं

प्रकृति पुरुष का फैलाव है

अपरा,परा प्रकृतियों एवं आत्मा-परमात्मा से ब्रह्माण्ड की सभी सूचनाएं हैं

आत्मा-परमात्मा का केन्द्र ह्रदय है

परम प्यार ह्रदय की धडकन में होता है

देह के नौ द्वार ज्ञान से प्रकाशित होते हैं

ज्ञान वैराज्ञ का फल है

क्षेत्र – क्षेत्रज्ञ का बोध ही ज्ञान है

ज्ञान की ऊर्जा ह्रदय में होती है न की बुद्धि में

====== ओम्======


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