वैराज्ञ प्रभु का निवास है और भोग स्वर्ग नर्क दोनों का द्वार हो सकता है
प्रकृति - पुरुष से सभीं जड – चेतन हैं
प्रकृति पुरुष का फैलाव है
अपरा,परा प्रकृतियों एवं आत्मा-परमात्मा से ब्रह्माण्ड की सभी सूचनाएं हैं
आत्मा-परमात्मा का केन्द्र ह्रदय है
परम प्यार ह्रदय की धडकन में होता है
देह के नौ द्वार ज्ञान से प्रकाशित होते हैं
ज्ञान वैराज्ञ का फल है
क्षेत्र – क्षेत्रज्ञ का बोध ही ज्ञान है
ज्ञान की ऊर्जा ह्रदय में होती है न की बुद्धि में
====== ओम्======
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