Sunday, February 5, 2012

गीता के मणि

  • संन्यास प्रभु का द्वार है

  • संन्यास स्व के प्रयास का फल नहीं प्रभु का प्रसाद है

  • भोग से भागा हुआ संन्यासी नहीं

  • भोग में उठा होश ही संन्यास में पहुंचाता है

  • भोग में डूबा,भोग में आसक्त संन्यासी नहीं

  • तन – मन का भोगी संन्यासी नहीं

  • वह जो भोग का द्रष्टा होता है , संन्यासी होता है

  • संन्यास में एक तरफ भोग - संसार और अगली तरफ प्रभु का आयाम दिखता है

  • भोग से भोग में हमारा अस्तित्व है

  • भोग से योग में पहुँचना हमारा लक्ष्य है

    ====ओम्======


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