संन्यास प्रभु का द्वार है
संन्यास स्व के प्रयास का फल नहीं प्रभु का प्रसाद है
भोग से भागा हुआ संन्यासी नहीं
भोग में उठा होश ही संन्यास में पहुंचाता है
भोग में डूबा,भोग में आसक्त संन्यासी नहीं
तन – मन का भोगी संन्यासी नहीं
वह जो भोग का द्रष्टा होता है , संन्यासी होता है
संन्यास में एक तरफ भोग - संसार और अगली तरफ प्रभु का आयाम दिखता है
भोग से भोग में हमारा अस्तित्व है
भोग से योग में पहुँचना हमारा लक्ष्य है
====ओम्======
Sunday, February 5, 2012
गीता के मणि
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