यहाँ हम गीता के तत्त्वों को देख रहे हैं और इस श्रृंखला के अंतर्गत पुरुष , परमात्मा एवं ब्रह्म शब्दों के संदर्भ में गीता के कुछ सूत्रों को दिया जा रहा है , आइये अब कुछ और सूत्रों को देखते हैं /
श्लोक – 14.3 – 14.4
ब्रह्म जीव धारण करता है , जीवों का जनक बीज मैं हूँ और ब्रह्म मेरे अधीन है /
श्लोक – 13.12 – 13.13
ब्रह्म न सत् है न असत्
श्लोक – 13.16
ब्रह्म सबसे दूर है , सबके समीप है और सबमें है
श्लोक – 7.10 , 9.10
सभीं जीवों का आदि बीज मैं हूँ
श्लोक – 8.3
अक्षरम् ब्रह्म परमं
श्लोक – 9.6 – 9.7
सभीं प्राणी मुझमें स्थित हैं और कल्प के अंत में सभीं प्राणी मुझमें समा जाते हैं
श्लोक – 9.8
जगत मेरे अधीन है
श्लोक – 9.9
मैं कर्म मुक्त हूँ और सबका द्रष्टा हूँ
यहाँ आप का सीधा सम्बन्ध गीता से हो रहा है और मैं आप दोनों का द्रष्टा बना रहना चाहता हूँ / जब आप का बिलय गीता में हो जाएगा तब मैं भी आप के ही साथ रहूँगा अतः गीता के शब्दों को मैं अपनें शब्दों में ढालना नहीं चाहता / गीता और आप के मध्य मैं मात्र एक संपर्क सूत्र आना रहना चाहता हूँ , गीता का भावार्थ करना मेरे बश में नहीं , आप स्वयं अपना भावार्थ करें और खुश रहें /
==== ओम् ============
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