पुरुष , परमात्मा एवं ब्रह्म शब्दों को हम यहाँ गीता के आधार पर गीता - तत्त्व के अंतर्गत समझ रहे हैं , आइये देखते हैं गीता के कुछ और सूत्रों को /
श्लोक –6.30
सर्वत्र सबको प्रभु से प्रभु में देखनें वाले के लिए प्रभु अदृश्य नहीं रहता /
श्लोक –13.28
जो सब में आत्मा रूप में परमात्मा को देखता है वह यथार्थ देखता है /
श्लोक-10.20
सब में आत्मा रूप में मैं रहता हूँ /
श्लोक –13.29
सब में प्रभु को एक सामान देखनें वाला परम धाम का यात्री होता है /
श्लोक –14.26
अभ्याभिचारिणी भक्ति में डूबा भक्त गुनातीत होता है और ब्रह्म स्तर का होता है /
श्लोक –13.31
ब्रह्म – योगी ब्रह्माण्ड को ब्रह्म के फैलाव के रूप में देखता है /
गीता में प्रभु श्री कृष्ण बारह अध्यायों में लगभग 80 श्लोकों के माध्यम से उसे ब्यक्त करना चाह रहे हैं जो प्रभु श्री कृष्ण के शब्दों में --------
अचिंत्य,अब्यक्त,असोचनीय,अकल्पनीय,निर्गुण एवं निराकार है
और
जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड एवं ब्रह्माण्ड में स्थित सभीं सूचनाओं का आदि मध्य एवं अंत है /
====ओम्=====
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