Wednesday, October 6, 2021

पतंजलि योगसूत्र 18 - 21 दृश्य और द्रष्टा का स्वरुप

 💐दृश्य ( प्रकृति ) और द्रष्टा ( पुरुष ) के स्वरुप को समझना , ज्ञान -योग की सिद्धि है । 

अब हम ( आप और मैं ) लेते हैं पतंजलि योग दर्शन का , दृश्य - द्रष्टा के स्वरुप को समझने के लिए । ध्यान रहे ये सोनों अति सूक्ष्म हैं । 

पतंजलि साधन पाद सूत्र : 18

दृश्य का स्वरुप 

03 गुण , 05 महाभूत , 11 इन्द्रियां , भोग और कैवल्य , दृश्य के स्वरुप के अंग हैं ।

पतंजलि साधन पाद सूत्र : 19

दृश्य का स्वरुप क्रमशः

" विशेष अविशेष लिंगमात्र अलिंगानि गुण पर्वाणि "

➡️11 इन्द्रियाँ + 05 महाभूत को विशेष कहते हैं

➡️05 तन्मात्र और अहँकार को अविशेष कहते हैं ।

लिङ्ग : प्रकृति विकृत के फलस्वरूप महत् , अहँकार , 11 इन्द्रियां , 05 तन्मात्र और 05 महाभूतों की उत्पत्ति होती है । ये 23 तत्त्व लिंग कहलाते हैं ।

अलिंग : प्रकृति की साम्यावस्था अर्थात मूल प्रकृति को अलिङ्ग कहते हैं। 

~~ ॐ ~~ 7 अक्टूबर

पतंजलि साधन पाद सूत्र : 20 

सूत्र : 20 > दृष्टा का स्वरुप क्रमशः

" द्रष्टा दृश्यमात्र : शुद्ध : अपि प्रत्यय अनुपश्य : "

अनुपश्यति का अर्थ है ,  पीछे से देखना 

द्रष्टा शुद्ध और दृश्य मात्र है जो चित्त के पीछे से देखता है अर्थात वह वही देखता है जो चित्त पर प्रतिविम्बित होता है।

~~ॐ~~ 7 अक्टूबर

पतंजलि साधन पाद सूत्र : 21

सूत्र : 21 > द्रष्टा क्रमशः 

सूत्र : 20 और सूत्र : 21 को एक साथ देखते हैं ⬇️

सूत्र - 20 : द्रष्टा वही देखता है जो चित्त पर प्रतिविम्वित होता है , वह स्वयं कुछ नहीं देखता ।

सूत्र - 21 : यहाँ महर्षि कह रहे हैं कि दृश्य , द्रष्टा के लिए ही है । दृश्य अर्थात प्रकृति । सांख्य कारिका ….. में कहा गया है कि प्रकृति पुरुष को कैवल्य में पहुँचाना चाहती है।

यहाँ निम्न सांख्य कारिकाओं को भी देखें ⬇️

कारिका - 56

सृष्टि के निमित्त 23 तत्त्व (महत् , अहँकार , 11 इन्द्रियाँ , 05 तन्मात्र और 05 महाभूत )पुरुष के लिए मोक्ष प्राप्ति के साधन हैं ।

कारिका : 57 - 58

👌 यह प्रकृति का स्वार्थ नहीं अपितु स्वार्थ की तरह परार्थ कार्य भी करती है । पुरुष मोक्ष का कारण , प्रकृति है । जैसे अचेतन दूध चेतन बछड़े का निमित्त होता है वैसे अचेतन प्रकृति , चेतन पुरुष के मोक्ष का माध्यम है। जैसे लोग अपनी अपनी उत्सुकताओं को पूरा करने के लिए अलग - अलग क्रियायों में प्रवृत्त होते हैं वैसे ही पुरुष मोक्ष हेतु प्रकृति भी प्रवृत्त रहती

कारिका :  59 - 60 

प्रकृति , पुरुष हेतु उपकारिणी है । जैसे एक नर्तिकी नाना प्रकार के भावों - रसो से युक्त नृत्य को प्रस्तुत करके निवृत्त हो जाती है वैसे ही प्रकृति भी पुरुष को अपना प्रकाश दिखा कर मुक्त हो जाती है ।

जैसे उपकारी व्यक्ति दूसरों पर उपकार करते हैं तथा अपने प्रत्युपकार की आशा नहीं रखते उसी तरह 

गुणवती प्रकृति भी निर्गुणी पुरुष के लिए उपकारिणी है और स्वयं के प्रत्युपकार की आशा नहीं रखती

~~ॐ~~7 अक्टूबर







पतंजलि साधन पाद सूत्र : 18

दृश्य का स्वरुप 

03 गुण , 05 महाभूत , 11 इन्द्रियां , भोग और कैवल्य , दृश्य के स्वरुप के अंग हैं ।

पतंजलि साधन पाद सूत्र : 19

दृश्य का स्वरुप क्रमशः

" विशेष अविशेष लिंगमात्र अलिंगानि गुण पर्वाणि "

➡️11 इन्द्रियाँ + 05 महाभूत को विशेष कहते हैं

➡️05 तन्मात्र और अहँकार को अविशेष कहते हैं ।

लिङ्ग : प्रकृति विकृत के फलस्वरूप महत् , अहँकार , 11 इन्द्रियां , 05 तन्मात्र और 05 महाभूतों की उत्पत्ति होती है । ये 23 तत्त्व लिंग कहलाते हैं ।

अलिंग : प्रकृति की साम्यावस्था अर्थात मूल प्रकृति को अलिङ्ग कहते हैं। 

~~ ॐ ~~ 7 अक्टूबर

पतंजलि साधन पाद सूत्र : 20 

सूत्र : 20 > दृष्टा का स्वरुप क्रमशः

" द्रष्टा दृश्यमात्र : शुद्ध : अपि प्रत्यय अनुपश्य : "

अनुपश्यति का अर्थ है ,  पीछे से देखना 

द्रष्टा शुद्ध और दृश्य मात्र है जो चित्त के पीछे से देखता है अर्थात वह वही देखता है जो चित्त पर प्रतिविम्बित होता है।

~~ॐ~~ 7 अक्टूबर

पतंजलि साधन पाद सूत्र : 21

सूत्र : 21 > द्रष्टा क्रमशः 

सूत्र : 20 और सूत्र : 21 को एक साथ देखते हैं ⬇️

सूत्र - 20 : द्रष्टा वही देखता है जो चित्त पर प्रतिविम्वित होता है , वह स्वयं कुछ नहीं देखता ।

सूत्र - 21 : यहाँ महर्षि कह रहे हैं कि दृश्य , द्रष्टा के लिए ही है । दृश्य अर्थात प्रकृति । सांख्य कारिका ….. में कहा गया है कि प्रकृति पुरुष को कैवल्य में पहुँचाना चाहती है।

यहाँ निम्न सांख्य कारिकाओं को भी देखें ⬇️

कारिका - 56

सृष्टि के निमित्त 23 तत्त्व (महत् , अहँकार , 11 इन्द्रियाँ , 05 तन्मात्र और 05 महाभूत )पुरुष के लिए मोक्ष प्राप्ति के साधन हैं ।

कारिका : 57 - 58

👌 यह प्रकृति का स्वार्थ नहीं अपितु स्वार्थ की तरह परार्थ कार्य भी करती है । पुरुष मोक्ष का कारण , प्रकृति है । जैसे अचेतन दूध चेतन बछड़े का निमित्त होता है वैसे अचेतन प्रकृति , चेतन पुरुष के मोक्ष का माध्यम है। जैसे लोग अपनी अपनी उत्सुकताओं को पूरा करने के लिए अलग - अलग क्रियायों में प्रवृत्त होते हैं वैसे ही पुरुष मोक्ष हेतु प्रकृति भी प्रवृत्त रहती

कारिका :  59 - 60 

प्रकृति , पुरुष हेतु उपकारिणी है । जैसे एक नर्तिकी नाना प्रकार के भावों - रसो से युक्त नृत्य को प्रस्तुत करके निवृत्त हो जाती है वैसे ही प्रकृति भी पुरुष को अपना प्रकाश दिखा कर मुक्त हो जाती है ।

जैसे उपकारी व्यक्ति दूसरों पर उपकार करते हैं तथा अपने प्रत्युपकार की आशा नहीं रखते उसी तरह 

गुणवती प्रकृति भी निर्गुणी पुरुष के लिए उपकारिणी है और स्वयं के प्रत्युपकार की आशा नहीं रखती

~~ॐ~~7 अक्टूबर







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