Friday, October 8, 2021

पतंजलि साधन पाद सूत्र 26 - 27

 दुःख मुक्त का केवल एक उपाय - तत्त्व ज्ञान । सांख्य दर्शन भी यही कहता है । सांख्य 25 तत्त्वों के बोध को ज्ञान कहता है और पतंजलि भी कहते तो यही हैं लेकिन एक परम पुरुष के रूप में ईश्वर की भी बात करते हैं ।

पतंजलि योगसूत्र सांख्य के धरातल पर उसे स्वीकारते हुए ईश्वर प्राणिधानि की भी बात करता है ।


पतंजलि साधन पाद सूत्र : 26 दुःख मुक्त होने का उपाय ⬇

पहले सूत्र रचना को देखते हैं ⬇️

"विवेक ख्याति अविप्लव हान उपायः "

शब्दार्थ

विप्लव > बाधा , हान > हानि ,

 विवेक ख्याति > गुणातीत की स्थिति 

अब सूत्र भावार्थ 

दुःखों से बाधा रहित मुक्त होने का केवल एक उपाय है , गुणातीत होना ।

गुणातीत कौन है ? 

श्रीमद्भगवतगीता में अध्याय : 14 श्लोक : 21 में अर्जुन प्रभु से गुणातीत योगी की पहचान जानना चाहते हैं और अध्याय : 2 श्लोक : 54 स्थिर प्रज्ञ योगी की पहचान जानने की इच्छा दिखाते हैं ।

गीता : 18.40 में प्रभु कहते हैं मृत्युलोक , अंतरिक्ष , स्वर्गलोक सहित्त सर्वत्र ऐसी कोई जगह नहीं जहाँ स्थित कोई भी वस्तु तीन गुणों से अप्रभावित रह सके ।

परमहंस रांमकृष्ण जी कहते हैं कि गुणातीत की  स्थिति में पहुँचा साधक 21 दिन स्व अधिक समय तक देह में नहीं रह सकता ।

इस बात को समझना होगा कि गुणातीत होना क्यों इतना कठिन है ?

सांख्य में सत्कर्म बाद सिद्धान्त है जिसे कारण - कार्य सिद्धान्त भी कहते हैं । कारण उसे कहते हैं जो पैदा करता है और कार्य उसे कहते हैं जो पैदा होता है । प्रकृति कारण है , कार्य नहीं । तीन गुणों की साम्यावस्था को मूल प्रकृति कहते हैं । पुरुष न कार्य है और न ही कारण । जब पुरुष की ऊर्जा प्रकृति को मिलती है तब उसकी साम्यावस्था खंडित हो जातिन्है और वह विकृत ही कर संर्गों की उत्पत्ति करती है । पूरे ब्रह्मांड में जो भी कुछ है उसका कारण प्रकृति है और प्रकृति त्रिगुणी है । सत्कार्यबाद में बताया गया है कि हर कार्य में उसका कारण उपस्थित रहता है । इस प्रकार त्रिगुणी प्रकृति हर बस्तु में उतस्थित है केवल पुरुष को छोड़ कर । यही कारण है कि गुणातीत होना क्यों असंभव सा है । सांख्य में पुरुष और बेदान्त में परमात्मा केवल गुणातीत है ।

पतंजलि साधन पाद सूत्र : 27 :निर्बीज समाधियुक्त योगीकी प्रज्ञा ⏬



सूत्र रचना ⏬

तस्य सप्तधा प्रान्तभूमि : प्रज्ञा

सूत्र भावार्थ ⏬

निर्बीज समाधियुक्त  योगीकी 07 प्रकार की प्रान्त भूमियाँ उच्चतम शिखर वाली प्रज्ञा होती है ।

~~◆◆ ॐ ◆◆~~09 अक्टूबर

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