पतंजलि साधन पाद सूत्र : 35
यम का पहला अंग अहिंसा
अहिंसक ब्यक्ति की संगति से अहिंसा का भाव जगने लगता है । तन , मन एवं वचन से अहिंसक बने रहने का अभ्यास , अहिंसा - साधना है ।
पतंजलि साधन पाद सूत्र : 36
यम का दूसरा अंग सत्य
"सत्य में प्रतिष्ठित , क्रिया और फल का आश्रय बन जाता है ' ।
सत्य क्या है ? जो जैसा है थीक वैसे ही समझना , सत्य है । निर्गुण अवस्था में चित्त सत्य को समझता है ।
पतंजलि साधन पाद सूत्र : 37
यम का तीसरा अंग अस्तेय
अस्तेयका अर्थ है ,चोरी न करनेके भावमें रहना । ऐसा ब्यक्ति सभीं रत्नोंका उपस्थान होता है ।
चोरी करने की सोच का मन में न उठना , अस्तेय साधना का फल है ।
पतंजलि साधन पाद सूत्र : 38
यम का चौथा अंग ब्रह्मचर्य
ब्रह्मचर्य में प्रतिष्ठित को वीर्य - लाभ होता है अर्थात वह तन , मन और बुद्धि से शक्तिशाली होता है ।
पतंजलि साधन पाद सूत्र : 39
यमका पाँचवां अंग अपरिग्रह
अपरिग्रह का अर्थ है , वस्तुओं का संग्रह न करना। बहुत कठिन है , अपरिग्रह -साधना ।
~~◆◆ ॐ ◆◆~~15 अक्टूबर
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